Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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दर्शन-सूत्र
टीका-सम्यक् दर्शन होने पर ही सभी द्रव्यो की, इनके पर्यायों · की और इनके गुणों की श्रद्धा जम सकती है, इनपर विश्वास हो . सकता है।
नाणमट्ठा दसण लूसिणो।
आ०, ६, १८७, उ, ४ टीका-जो सम्यक् दर्शन से भ्रष्ट हो जाते है, जिनका विश्वास आत्मा, ईश्वर, पाप, पुण्य आदि सिद्धान्तो पर से उठ जाता है, उनका सम्यक् जान भी नष्ट हो जाता है। वे जान से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्वी हो जाते है । मिथ्यात्वी हो जाने पर उनका लक्ष्य केवल ‘भोग भोगना, सांसार सुख प्राप्त करना, ससारिक वैभव एकत्र करना
ही रह जाता है। इस कारण उनका ज्ञान मिथ्या ज्ञान है और वे -मिथ्यात्वी है। इस प्रकार दर्शन से पतित आत्माएँ, ज्ञान भ्रप्ट हो जाया करती है।
समियंति मन्नमाणस्स समिया, वा असमिया वा समिया होइ ।
०, ५ १६४, उ,५ टीका-जो आत्मा ज्ञान, दर्शन और चारित्र मे पूरी परी श्रद्धा करता है और डिगाने पर भी नहीं डिगता है, तो ऐसे सम्यक्त्वशील
आत्मा के लिये सच्चा और मिथ्या दोमो ही प्रकारका ज्ञान सा 11-रूप से परिणमित हो जाता है । असत्य भी सम्यक्त्वी के लिये स ___-रूप से ही काम देता है, यह सव महिमा सम्यक्त्व की ही है।
वीरा सम्मत्त दंसिणो, सुद्धं तेसिं परतं ।
सू०,५८, २३