Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ दुर्लभाग-शिक्षा-सूत्र
(४) सद्धा परम दुल्लहा।
उ०, ३, टीका- यदि सौभाग्य से जान-दर्शन-चारित्र रूप मोक्ष मार्ग की वाते सुनने का मौका मिल जाय, तो भी उनपर श्रद्धा आना-आत्म विश्वास का पैदा होना अत्यन्त कठिन है । दुर्लभ है !
णो सुलभ वोहिं च आहियं । . .. . . सू०, २, १९, उ, ३ टीका-सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन मिलना अत्यन्त कठिन है। अनेक जन्मो मे सचित पुण्य के उदय से ही ज्ञान' और दर्शन की प्राप्ति होती है। इसलिए जीवन को प्रमादमय नही बनाकर पर-सेवामय ही बनाना चाहिए। - -
. संवोही,खलु दुल्लहा। . . , . सू०, २,१, उ, १ -
टीका-सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन की प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है । आत्मा मे कषायो की गाति होने पर और पुण्य के उदय होने पर ही सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होती है। इसलिये जीवन मे प्रमाद को स्थान नही देना चाहिये ।
दुलहया कारण फासया। । उ०,१०, २० ..
.. - टीका-श्रेष्ठ धर्म का, अहिंसा प्रधान धर्म का और स्याद्वाद प्रवान सिद्धान्त का काया द्वारा आचरण किया जाना तो अत्यन्त