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यह व्यक्त करते मुझे अत्यन्त हर्ष है कि समादरणीया महासतीजी म. के सानुग्रह मार्गदर्शन तथा संयोजन में, प्रातःस्मरणीय, महामहिम आचार्य श्री हरिभद्र सूरि के योग-ग्रन्थ हिन्दी जगत् के समक्ष उपस्थापित करने का सौभाग्य पा रहा हूँ। आशा है, हिन्दीभाषी पाठक भारतभूमि के एक महान योगी, महान तत्त्वद्रष्टा, महान् ग्रन्थकार द्वारा प्रदत्त योगामृत का पान कर जीवन में अभिनव कर्मचेतना एवं आत्मशान्ति का अनुभव करेंगे।
विजयदशमी, वि० सं० २०३८ ' -डॉ. छगनलाल शास्त्री कैवल्य धाम
एम. ए. (हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत तथा जैनोलोजी) सरदारशहर (राजस्थान)
पी-एच. डी., काळतोर्थ,
- विद्यामहोवधि भू. पू. प्रवक्ता, इन्स्टीट्यूट ऑफ प्राकृत, जैनोलोजी एण्ड अहिसा, वैशाली (बिहार)
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