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अध्याय-२
श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप
भगवान् महावीर के निर्वाण के उपरान्त जैन संघ का नायकत्व उनके गणधर सुधर्मास्वामी ने किया । सुधर्मास्वामी के पश्चात् क्रमशः जम्बूस्वामी, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, सम्भूतविजय, भद्रबाहु, स्थूलिभद्र, आर्यमहागिरि, सुहस्ती आदि विभिन्न स्थविरों ने क्रमशः निर्ग्रन्थ संघ का नेतृत्व किया । पर्युषणाकल्प की 'स्थविरावली'१, जिसका प्रारम्भिक भाग ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी का माना जाता है,२ में इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इस स्थविरावली में भी दो प्रकार का विवरण है, प्रथम तो संक्षिप्त
और द्वितीय अपेक्षाकृत विस्तृत । संक्षिप्त स्थविरावली में सर्वप्रथम सुधर्मास्वामी का नाम आता है, उनके पश्चात् क्रमशः जम्बूस्वामी, प्रभव, शय्यंभवसूरि और यशोभद्रसूरि का नाम दिया गया है । यशोभद्रसूरि के दो शिष्य हुए, प्रथम सम्भूतविजय और द्वितीय भद्रबाहु । सम्भूतविजय के पट्टधर स्थूलिभद्र हुए । स्थूलिभद्र के दो शिष्यों-आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ति का नाम मिलता है । सुहस्ति के शिष्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध हुए। इनके पश्चात् क्रमशः आर्यइन्द्रदिन्न, आर्यदिन्न, आर्यसिंहगिरि और आर्यवज्र हुए । आर्यवज्र के ४ शिष्य-नागिल, पद्मिल, जयन्त और तापस हुए जिनसे क्रमशः नागिली, पद्मिली, जयन्ती और तापसी शाखायें अस्तित्व में आयी । उक्त संक्षिप्त स्थविरावली को एक तालिका के रूप में इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है:
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