________________ "उ. 1. संरंभ-पाप का विचार करना। अ+अ= आ+आ = आ+उ = * 2.समारंभ-पाप करने हेतु तैयार ओ+म् = ओम्। होना। प्र.15.पंच परमेष्ठी का किन स्थानों पर 3. आरंभ- पाप करना। जाप करना चाहिए तथा इनसे ये तीन प्रकार के पाप तीन कौनसे केन्द्र जागृत होते हैं? योग (मन, वचन, काया) से करना, उ. 1. 'नमो अरिहंताणं' पद का जाप 'माथे करवाना तथा अनुमोदना करना। की चोटी' पर करना चाहिए। यह पाप कार्य में चार भाव हो सकते हैं - ज्ञान केन्द्र को जागृत करता है। क्रोध, मान,माया तथा लोभ। 2. 'नमो सिद्धाणं' पद का जाप भृकुटि 3 (संरंभ आदि) x3 (योग) = 9 के मध्य भाग पर करना चाहिए। यह 9X3 (करण) = 27 दर्शन केन्द्र को स्फुरायमान करता 27X4 (क्रोधादि कषाय) = 108 है। इन 108 प्रकार के पापों का क्षय 3. 'नमो आयरियाणं' पद का ध्यान कंठ करने के लिये माला में 108 मणके के मध्य भाग पर करना चाहिए। यह रखे गये हैं। विशुद्धि केन्द्र को प्रभावशाली बनाता प्र.14.नवकार मंत्र में 'ओम्' का निर्माण किस प्रकार होता है? 4. 'नमो उवज्झायाणं' पद का जाप उ. पंच परमेष्ठी के प्रथम अक्षरों की सन्धि हृदय पर करना चाहिये। यह आनंद (जोड़) करने से ओम् निर्मित होता है, केन्द्र को गतिशील करता है। जो कि इस प्रकार है 5. 'नमो लोए सव्वसाहूणं' पद का ध्यान (i) अरिहंत का अ नाभि पर करना चाहिए। यह स्वास्थ्य केन्द्र को सबल एवं (ii) सिद्ध का अ (सिद्ध अशरीरी/अरूपी परिपुष्ट करता है। होते हैं) प्र.16. नवकार मंत्र का जाप किस दिशा में (iii) आचार्य का आ करना चाहिए? (iv) उपाध्याय का उ उ. संपूर्ण नवकार मंत्र का जाप उत्तर, पूर्व (V) साधु का म् (मुनि) अथवा पूर्वोत्तर (ईशान कोण) दिशा में