________________ भी अलग नहीं होता है, उसे गुण कहते है। पूर्व आकार, स्थिति आदि का त्याग एवं नये आकारादि की प्राप्ति को पर्याय कहते है। द्रव्य छह प्रकार के हैं, जिनका पूर्व में विवेचन किया जा चुका है। जीवास्तिकाय (आत्मा) एक द्रव्य है, उसमें चेतनता, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, आदि अनन्त गुण नित्य एवं अविनाभावी रूप से स्थित हैं, इस विशिष्टता को गुण कहा जाता है। मनुष्य आदि का मरकर देवादि होना पर्याय कहलाता है। इस प्रकार जीव को द्रव्य, चेतनत्व आदि को गुण तथा देव, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि रूपों में परिवर्तित होना पर्याय कहलाता है। प्र.297.निक्षेप किसे कहते है? उ. प्रतिपाद्य वस्तु का व्यवस्थित रूप से बोध प्राप्त करने के लिये उसमें नाम 'आदि की स्थापना करना निक्षेप कहलाता है। निक्षेप चार प्रकार के कहे गये हैं(1)नाम निक्षेप- किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान आदि के गुणअवगुण की विवक्षा किये बिना व्यवहार हेतु नाम रखना नाम निक्षेप कहलाता है। जैसे-पहचान हेतु राम, कृष्ण, मोहन, सोहन आदि नाम रखना। (2)स्थापना निक्षेप- किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का चित्र, मूर्ति आदि में आरोपण करना / जैसे महावीर, कृष्ण आदि की मूर्ति अथवा चित्र। (3)द्रव्य निक्षेप- भूतकाल अथवा भविष्य के आधार पर वर्तमान में कथन करना। जैसे-गृहस्थाश्रम में स्थित अव्यक्त तीर्थंकर को अथवा उनके निर्वाण के बाद उनकी काया को तीर्थंकर कहना। (4)भाव निक्षेप- वर्तमान के आधार पर कथन करना। जैसे केवलज्ञान-केवलदर्शन से युक्त ऋषभ, महावीर आदि प्रभु देशना दे रहे हो, तब उनको तीर्थंकर कहना। प्र.298. जैन दर्शन एवं व्यवहार में प्रयुक्त शब्दों की व्याख्या कीजिये। उ. (1)देव गुरु पसाय- जब साधु साध्वी भगवंतों को सुख शातापृच्छा की जाती है, तब वे देव गुरु पसाय कहते हैं, यानि देव और गुरु की कृपा से शाता है। (2)वर्तमान जोग- गौचरी की प्रार्थना करने पर गुरु भगवंत स्पष्ट रूप से स्वीकृति अथवा निषेध न करके वर्तमान जोग कहा करते हैं अर्थात् उस समय द्रव्यक्षेत्र-काल एवं भाव की जैसी