Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 312
________________ नवकार मंत्र की साधना प्र.633.मंत्र-साधना की आवश्यकता क्यों है? उ. निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विशेष विधानपूर्वक जो क्रियानुष्ठान किया जाता है, उसे साधना कहते है। कोई भी विद्यार्थी सोलह-सतरह वर्षों की दृढ मेहनत से एम.ए., एम. कॉम. की उपाधि प्राप्त करता है। वैज्ञानिकों ने शोधपूर्वक नये नये निष्कर्ष दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत किये, वे उनकी दीर्घकालीन विज्ञानसाधना का ही परिणाम है। किसी भी बीज को वटवृक्ष में रूपान्तरित होने में युगों की अवधि पसार करनी होती है। कोई भी सिद्धि/ उपलब्धि एकाएक सिद्ध नहीं होती, उसके लिए महान् साधना एवं कठोर परिश्रम करना होता है। इस विराट् जगत में ऐसी कोई वस्तु अथवा पदार्थ नहीं, जिसे मंत्र साधना के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सके। हमारे महापुरुषों ने मंत्र को चिन्तामणि रत्न, कामगवी, कल्पवृक्ष तथा कामघट की उपमाएँ दी है। बस! जरूरी है कि इसकी आराधना व जाप सविधि हो, क्रिया ज्ञानयुक्त एंव मानस श्रद्धा से परिपूर्ण हो। प्राचीन महर्षियों द्वारा उक्त आराधना को तो हमने पकड लिया परन्तु सम्यग्ज्ञान एवं समुचित विधि को नहीं जाना, यह साधना की अपूर्णता है, ऐसी अज्ञानदशा में भला कैसे मंत्र साधना फलित हो सकती है! 'हम मंत्र-जप-साधना करते हैं! परन्तु रूक रूककर, कभी आलस्य व प्रमाद से निरन्तरता खण्डित हो जाती है तो कभी हमारी क्रिया व निष्ठा संकल्प-विकल्प में उलझकर रह जाती है। स्वीकृत मंत्र साधना को अदम्य उत्साह, उत्तरोत्तर गुणानुगुणित होती श्रद्धा, मन की उमंग एवं काया की पवित्रता- एकाग्रतापूर्वक पूर्ण प्रण से किया जाये तो साधना निश्चितरूपेण लक्षित ध्येय को प्राप्त करवाती है। . इसमें विघ्नजय, बाधाओं के प्रति

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