Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 326
________________ हाथ में विशेष प्रकार की प्राण ऊर्जा, विद्युत शक्ति और जीवनी-शक्ति (ओरा) निरंतर चलती रहती है। विभिन्न मुद्राएँ शरीर की चेतना शक्ति को जगाने के लिए रिमोट कंट्रोल के बटन की तरह काम करती हैं। ज्ञानमुद्रा मानसिक तनाव दूर करके ज्ञानशक्ति बढ़ाती है। पृथ्वीमुद्रा से शारीरिक शाक्ति बढ़ती है। शंखमुद्रा से 72000 नाड़ियों पर प्रभाव पड़ता है और स्नायुमंडल सशक्त होता है। सुरभिमुद्रा से वात, पित्त और कफ प्रकृति प्रधान मनुष्य को फायदा होता है। प्र. 655. मुद्रा करने के सामान्य नियम बताईये। उ. 1. पांच तत्त्वों के संतुलन से मनुष्य स्वस्थ रह सकता है। अंगूठे के अग्रभाग पर दूसरी अंगुली के अग्रभाग को रखने से उस अंगुली का तत्त्व बढ़ता है और अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाने से वह तत्त्व कम होता है। 2. मुद्रा का प्रयोग स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध और रोगी-निरोगी कोई भी कर सकता है। बायें हाथ से मुद्रा करने से शरीर के दाहिने भाग पर प्रभाव होता है और दाहिने हाथ से करने से शरीर के बायें भाग पर प्रभाव होता है। 3. मुद्रा करते समय अंगुली और अंगूठे का स्पर्श सहज होना चाहिए। अंगूठे से हल्का दबाव देना चाहिए और दूसरी अंगुली सीधी और एक दूसरे से लगी रहनी चाहिए और हथेली आसमान की ओर रहनी चाहिए। अगर अंगुलियाँ सीधी न रहें तो आरामपूर्वक हो सके, उतनी सीधी रखने की कोशिश करनी चाहिए। धीरे-धीरे बीमारी दूर होने पर अंगुलियाँ सीधी होती जाएगी और मुद्रा भी ठीक से हो सकेगी। 4. कोई भी मुद्रा 48 मिनट तक करने पर शीघ्र लाभदायी होती है। अगर एक साथ करना संभव न हो तो सुबह - शाम 15 - 15 मिनिट करके 30 मिनट तक एक मुद्रा करनी चाहिए। सिर्फ वायुमुद्रा भोजन के बाद तुरंत कर सकते हैं, जिससे गैस की तकलीफ दूर होती है। अन्य मुद्राएँ न करें। 5. पृथ्वीमुद्रा और ज्ञानमुद्रा साधक अपनी इच्छा के अनुसार ज्यादा से ज्यादा और लंबे समय तक कर सकते हैं। 6. अन्य किसी भी चिकित्सा के साथ मुद्रा का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि मुद्रा प्रयोग से चिकित्सा में सहायता मिलती है। 7. मुद्रा करते समय पद्मासन, व्रजासन के प्रयोग से ज्यादा एवं शीघ्र लाभ मिलता है। 8. मुद्रा प्रयोग के समय ऊनी आसन का प्रयोग करना एवं मुख उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर

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