Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 324
________________ तो मन स्वस्थ बनेगा। उस स्थान पर गपशप, शयन आदि न करें। यदि अलग कक्ष की व्यवस्था न हो सके तो इच्छित स्थान पर अभ्यास करें। हर अभ्यास पूर्व, उत्तर दिशा में ही करें। चुम्बकीय तत्त्व से परिपूर्ण वायु उत्तर दिशा से प्रसारित होती है। वह शरीर में ऊर्जा, शक्ति एवं आकर्षण बढ़ाती है। प्रत्येक ध्यान एवं प्राणायाम के लिये जो समय निर्दिष्ट किया है, उसमें क्रमशः वृद्धि कर सकते हैं। हर ध्यान/प्राणायाम के मध्य थोड़ाथोड़ा विश्राम लेना अच्छा-लाभकारी होता है। इनसे मन एकाग्र होगा, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी तथा वचन-शुद्धि की प्राप्ति होगी। प्र.653. महाराजश्री! प्राणायाम से वायु विजय संभव है पर मनोजेता बनने की बात कहते हैं, वह किस प्रकार संभव है? उ. मन और पवन का स्थान एक है। जहाँ मन है, वहाँ पवन है और जहाँ पवन हैं, वहाँ मन है। दोनों क्षीरनीर की भाँति परस्पर एकमेक है। उनकी क्रिया भी समान है। मन का संचरण/ अस्थिरता ज्यादा होने पर पवन भी अस्थिर होगा और मन की अचंचलता सिद्ध होने पर पवन भी स्थिर होगा। अतः प्राणायाम के द्वारा शरीरस्थ वायु को सन्तुलित एवं स्थिर किया जाता है और वायु के स्थिर होने पर मन भी संतुलित, चंचलता रहित एवं एकाग्र बनेगा ही। अतः प्राणायाम से मन को सहज ही साधा जा सकता है, इसमें कोई बाधा नहीं है।

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