________________ उ. विधि-अनामिका अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर शेष तीनों अंगुलियाँ तर्जनी, मध्यमा, और कनिष्ठिका सीधी रखकर पृथ्वी मुद्रा बनती है। लाभ: 1. इस मुद्रा के द्वारा शक्ति, कान्ति और तेजस्विता बढ़ती है। बाजार के किसी भी टॉनिक से यह मुद्रा ज्यादा असरकारक है। इस मुद्रा से आंतरिक प्रसन्नता, स्फूर्ति, स्वस्थता, उदारता और विचारशीलता बढ़ती है और विशाल हृदयी बन सकते हैं। नोट :- इस मुद्रा से शक्ति बढ़ती है इसलिए बढ़ी हुई शक्ति का दुरुपयोग न हो, इस बात का ध्यान रहे। प्र. 661. आदिति मुद्रा की विधि एवं लाभ बताओ। उ. विधि - अंगूठे के अग्रभाग को अनामिका के मूल पर रखकर, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका, इन चारों अंगुलियों को एक दूसरे के पास सीधी रखने पर आदिति मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में अंगूठा थोड़ा सा तिरछा रहेगा। लाभ : - जिन्हें सुबह उठते ही एक बार-बार छींक आती हो या नियमित छींक की तकलीफ रहती हो, उनके लिये यह मुद्रा अत्यन्त लाभप्रद है। ___ उबासी और छींक इस मुद्रा से रोकी जा सकती है। इस मुद्रा के साथ सत्संग करने से ज्यादा लाभ मिलता है। प्र. 662. सूर्यमुद्रा कैसे करें? उ. विधि-अनामिका के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से अनामिका पर हल्का __सा दबाव देते हुए शेष अंगुलियाँ सीधी रखते हुए सूर्यमुद्रा बनती है। पद्मासन या सिद्धासन में करने से ज्यादा लाभ होता है। लाभ: 1.इस मुद्रा से सूर्यस्वर शुरू होकर अग्नितत्त्व बढ़ता है, जिसके कफ ___ के हर रोग में यह उपयोगी मुद्रा है। दमा, सर्दी, निमोनिया, टी.बी., प्लुरसी, सायनस और सर्दी में असरकारक है। 2.5 से 15 मिनट करने से सूर्यस्वर शुरू होता है। 3. थॉयराईड ग्रंथि का स्राव संतुलित होता है। . *************** 301 ************* **