Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 334
________________ समय निम्नोक्त बातों का विशेष रूप से ध्यान में रखें। 1. भोजन के छह घण्टे बाद अथवा दूध पीने के दो घण्टे बाद आसन कर सकते हैं। खाली पेट आसन करना सर्वोत्तम मार्ग है। 2. आसन करते समय श्वास मुख से न लेकर श्वसन नासिका से ही ग्रहण करें। 3. मेरूदण्ड, सीना आदि सीधे होने चाहिये। 4. जयणापूर्वक कम्बल आदि बिछाकर करें अन्यथा शरीर में प्रवाहित विद्युत्-प्रवाह रुक सकता है। 5. आसन करते समय शरीर के साथ अत्याचार न करें। सहजता से जितना सधे, उतना धैर्य से करें। 6. आसन करते समय आज्ञा चक्र आदि पर ध्यान करने से महान् लाभ मिलता है। 7. आसन ऐसे स्थान में करें, जो प्रकाश युक्त एवं जीवों के उपद्रव से रहित हो, जहाँ स्त्री, नपुंसक, तिर्यंचआदि का आवागमन न हो। प्र.671.पद्मासन करने का विधि-विधान समझाईये। उ. पद्मासन को कमलासन एवं पर्यंकासन भी कहा जाता है। इस आसन में पाँवों का आकार पद्म अर्थात् कमल तुल्य होने से पद्मासन कहा जाता है। तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमा पद्मासन में होती है। विधि- दोनों भृकुटियों के मध्य में जो आज्ञा चक्र है, उस पर ध्यान स्थापित करें। रेचक करते हुए दाहिने पांव को मोडकर बायीं जंघा पर रखें और बायें पांव को मोड कर दाहिनी जंघा पर रखें। ध्यान रहे - घुटने जमीन से लगे रहे। सिर, गर्दन, * सीना, मेरुदण्ड आदि का पूरा भाग सीधा और तना हुआ हो तथा दोनों हाथ दोनों घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में स्थापित करें अथवा नाभि के सम्मुख एक दूसरे पर रखें। पांवों में कदाच् झनझनाहट, चित्त में घबराहट हो तब भी अखिन्न मन से अभ्यास जारी रखें। धीरे धीरे आसन सिद्ध हो जायेगा। दृष्टि नासाग्र अथवा भ्रूमध्य में स्थिर रखें। आँखें आधी खुली आधी बंद, अथवा पूरी तरह बंद रख सकते हैं। इस आसन में ध्यान करें कि आज्ञा

Loading...

Page Navigation
1 ... 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346