Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 339
________________ मुक्ति एवं आत्म स्वरूप का दर्शन जानना चाहिये / इनका विस्तृत वर्णन होता है। अन्य ग्रन्थों से एव गुरूगम से जानना प्र.678. इडा, पिंगला एवं सुषुम्ना को / चाहिये। समझाईये। . प्र.679. मूलाधार आदि चक्रों को प्राणों को वहन करने वाली बारीक समझाईए। नलिकाओं को नाड़ी कहते हैं। उ. चक्र आध्यात्मिक ऊर्जा के केन्द्र हैं। तन्दुलवेयालिया सूत्र में करोड़ों ये सूक्ष्म शरीर में होने से चर्मचक्षु से नाडियाँ कही हैं, अन्य धर्मावलम्बी दिखते नहीं हैं। अतः स्थूल शरीर में 72000 नाडियाँ मानते हैं, फिर भी स्थित स्नायु केन्द्र, ज्ञान तन्तु आदि से साढे तीन करोड़ रोमावली सर्वमान्य इनकी साम्यता घटित करते हुए है। शरीर में इडा, पिंगला, सुषुम्ना, इनका कथन किया जाता है। ऐसे गांधारी, हस्तिजिव्हा, पूषा, यशस्विनी, सात चक्र हैं। अलम्बुषा, कुहू, शंखिनी, ये दस 1. मूलाधार चक्र - गुदा से दो नाडियाँ मुख्य हैं। इनमें भी प्रथम तीन अंगुल उपर और मेरूदण्ड के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इनकी अन्तिम मणके पास स्थित चक्र उत्पत्ति आज्ञा चक्र से हुई है और को मूलाधार कहा जाता है। इसे सहस्रार चक्र व मेरू से होती हुई गुह्य गणेश चक्र भी कहा जाता है। स्थान से होकर नाभि के केन्द्र में मिल इसका रक्त वर्ण कहा गया है। गयी हैं। . इस चक्र का ध्याता एक वर्ष के शरीर में मेरूदण्ड के दक्षिण (दायीं) अन्दर-अन्दर नहीं पढे हुए दिशा में पिंगला और वाम (बायीं) क्लिष्टतम शास्त्रों और उनके दिशा में इडा नाडी है। इन नाडियों के रहस्यों को आत्मसात् करता है। मध्य में सुषुम्ना (सुखमना) नाडी है। उसके सम्मुख सरस्वती नृत्य जब बायां स्वर (श्वास) चले तब चन्द्र करती है। का उदय एवं दायां स्वर (श्वास) चले 2. स्वाधिष्ठान चक्र - पीतमयी तब सूर्य का उदय जानना चाहिये। उष्मा से युक्त रक्तवर्णीय यह चक्र दोनों स्वर (श्वास) चलने पर सुषुम्ना जननेन्द्रिय के मूल में स्थित है। **** *** ** * ** 311 *************

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346