________________ बन्ध, नाडी और चक्रों का वर्णन है। हैं? प्र.674.तीन प्रकार के बंध कौनसे हैं? तरह भीतर खींचे कि वह पीठ से लग उ. (1) मूलबन्ध (2) उड्डीयान बंध जाये और शरीर को थोडा आगे (3) जालन्धर बन्ध। झुकाये, यह उड्डीयान बंध की विधा प्र.675. मूल बंध किस प्रकार किया जाता लाभ-इस बंध से ब्रह्मचर्य पालन उ. एडी से गुदा और जननेन्द्रिय के मध्य तथा कब्ज रोग का विनाश होता है का भाग, जिसे सीवन या योनि कहते और पेट की अनावश्यक चर्बी नष्ट हो हैं, उसे दबाना और गुदाद्वार को जाती है। संकुचित करते हुए (भीतर की ओर प्र.677.जालन्धर बन्ध किसे कहते हैं? खींचते हुए) किया जाने वाला मूलबंध उ. पद्मासन में स्थित होकर पूरकपूर्वक कहलाता है। कुम्भक करके ठुड्डी को झुकाकर लाभ- इस बंधन-विधान से बिगडते सीने के साथ लगाना जालन्धर बन्ध स्वास्थ्य की रक्षा, शरीर में नयी शक्ति कहलाता है। . का संचार, वीर्य की पुष्टि एवं लाभ- इसके अभ्यास से कंठ संबंधी जठराग्नि का प्रदीप्तिकरण होता है। समस्त रोग दूर हो जाते हैं, प्राणों का बालों का श्वेत होना और वीर्य का व्यवस्थित संचरण होता है तथा इडा, विनाश रूक जाता है। पिंगला नाडी बंद होकर प्राण, अपान अपान वायु ऊर्ध्वगति पाकर प्राणवायु सुषुम्ना में प्रविष्ट होता है। इस आसन के साथ सुषुम्ना में प्रविष्ट होती है, में बैठकर सम्पूर्ण श्वास निकालकर जिससे अनहद आनंद का कोष खुल मूल व उड्डीयान बंध करना। बाद में जाता है। इस बंध से यहाँ तक कि पूरक और कुम्भकपूर्वक जालन्धर बंध बुढ़ापे को भी जीता जा सकता है। करके ऊँकार अथवा इष्ट देव के मंत्र प्र.676. उड्डीयान बंध किसे कहते है? का जाप करने से विकारों का विनाश, उ. सम्पूर्णतया रेचन करके पेट को इस चित्त की स्वस्थता, शोक-रोग से ************** 310 ****************