Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 335
________________ चक्र में स्थित दर्शन केन्द्र तक कहा गया हैं कि बुरे से बुरे एवं उद्घाटित हो रहा है। निम्न केन्द्र लम्बे से लम्बे सिगरेट, तम्बाकू, में स्थित चेतना (वीर्य) तेज और गांजा, चरस, अफीम, शराब आदि ओज में परिवर्तित होकर ऊर्ध्वगामी व्यसन छूट जाते हैं। हो रही है। 5. पक्षाघात, कुष्ठ, दमा, केंसर, उदर लाभ कृमि, त्वचा के रोग, वात-पित्त1. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य कफ आदि बीमारियाँ शान्त हो स्वरचित योग शास्त्र में इस जाती हैं। आसन के गुणों का कीर्तन करते 6 मानसिक विकार, कषाय, क्रोध, हुए कहते हैं कि जैसे पंक में द्वेष, ईर्ष्या, वैर-विरोध आदि रोगों उत्पन्न और जल से पोषित कमल से छुटने के लिये यह आसन वृद्धि को प्राप्त करके उनसे अमोघ उपाय है। निर्लिप्त (अलग) रहता है, इसी 7. धातु क्षय में यह उपयोगी आसन प्रकार साधक पद्म (कमल) - है। इससे स्मरण शक्ति आसन को साधकर संसार रूप एवं आत्म बल बढता कीचड़ में उत्पन्न होकर एवं भोग है। जल से वृद्धि पाकर भी दोनों से इस आसन की महिमा मुक्त होकर योग रूप अभ्यास अपार है। हठयोग करके आत्मा में स्थित हो जाता है। प्रदीपिका में कहा गया 2. इस आसन के अभ्यास से हैखिन्नता, व्याकुलता एवं चंचलता इदं पद्मासन प्रोक्तुं, सर्वव्याधिविनाशनम् / पलायन कर जाती है। दुर्लभ येन केनापि, धीमता लभ्यते भुवि / / 3. नयन की तेजस्विता, मुख की इस प्रकार सर्वव्याधियों को समाप्त सौम्यता व बुद्धि की तीक्ष्णता करने वाले पद्मासन की प्राप्ति किसी बढती है। चित्त उल्लास से भरा विरल बुद्धिमान् पुरुष को ही होती है। रहता है। चिन्ता, शोक आदि नष्ट ध्यान रहे- दुर्बल व्यक्ति पद्मासन न हो जाते हैं। करें अन्यथा विपरीत परिणाम आ 4. इस आसन से आत्म विश्वास सकते हैं। बढता है। इसका प्रभाव तो यहाँ * *** * 307 ** ** ****** ****

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