Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 327
________________ रखना उत्तम होता है। 9. ध्यान एवं धार्मिक साधना के समय मुद्रा प्रयोग से साधना जल्दी फलित होती है, एकाग्रता बढ़ती है। 10.शारीरिक अनुकूलता न होने पर पट्ट, कुर्सी आदि का भी उपयोग किया जा सकता है। प्र. 656. ज्ञान मुद्रा किस प्रकार करें? उ. विधि :- तर्जनी के अग्रभाग और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों को एक साथ सीधी रखने से ज्ञानमुद्रा बनती है। लाभ: 1.यह मुद्रा मस्तिष्क के ज्ञानतंतुओं को सक्रिय बनाती है जिससे मन ___ शांत होता है और ज्ञान का विकास होता है। 2.इससे मानसिक एकाग्रता, स्मरण शक्ति और प्रसन्नता बढ़ती है। 3.आध्यात्मिकता, स्नायुमंडल की क्षमता और ध्यान में प्रगति होती है। 4. मानसिक रोग जैसे पागलपन, अस्थिरता, अनिश्चितता, उन्माद, बैचेनी, डीप्रेशन, फिट की बीमारी, चंचलता और व्याकुलता दूर होती है। 5. चिन्ता, क्रोध, उत्तेजना, आलस्य, भय जैसे मानसिक तनाव दूर होते हैं। 6. अनिद्रा के रोग में ज्ञानमुद्रा रामबाण उपाय है। जिसे ज्यादा नींद आती हो, उनकी नींद संतुलित होती है। अनिद्रा की पुरानी बीमारी अथवा माइग्रेन जैसे सिरदर्द के लिये ज्ञानमुद्रा और प्राणमुद्रा साथ करनी चाहिए, जिससे शीघ्र लाभ होता है। इस मुद्रा को व्याख्यान और सरस्वती मुद्रा भी कहते हैं क्योंकि इस मुद्रा से स्वयं का चिंतन और पुस्तक का ज्ञान बढ़ता है। प्र. 657.वायु मुद्रा का विधान बताओ। उ. विधि - तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से उसके पर हल्का सा दबाव रखते हुए और दूसरी अंगुलियाँ सीधी रखने पर वायुमुद्रा बनती है। वायुमुद्रा वज्रासन में बैठकर करने से तुरंत और ज्यादा लाभ मिलता है। लाभ: 1.खाना खाने के बाद बैचेनी या गैस की तकलीफ हो तब तुरंत वज्रासन में बैठकर यह मद्रा करने से राहत मिलती है। 2.वायु के रोग जैसे सायटिका, लकवा (पेरेलिसीस), घुटनों के दर्द में

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