Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 311
________________ पुरूषार्थ अवश्यमेव फलदायी बनेगा। मैं स्वयं के प्रति रूचिवान हूँ, मैं स्वयं से प्रेम करता हूँ, मुझे अपनी शक्तियों का प्रयोग करना है। बाधाएँ आती हैं, असफलता भी एक बाधा ही है। पर उन सभी बाधाओं को पार करके मुझे अलौकिक, अपूर्व एवं सफल व्यक्तित्व का स्वामी होना है। मैं स्वयं से स्नेह करता हूँ। विश्वास करता हूँ, गौरव करता हूँ। मेरी धमनियों में विश्वास और श्रद्धा का रक्त बह रहा है। हीनता, घुटन, बिखराव, असंतुलन, क्रोध की सारी ग्रन्थियाँ खुल रही हैं। मेरे रोम-रोम में आत्म विश्वास के असंख्य सितारें जगमगा उठे हैं। इस प्रकार दस मिनट तक प्रतिदिन जाप करें। शनैः शनैः आपको प्रतीत होगा कि वास्तव में मेरा विश्वास बढ़ा है, बढ़ रहा है। **************** 283 ******* *********

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