Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 313
________________ निर्भयता, शरीर की सुविधा का . त्याग, लक्ष्य शुद्धि तथा धैर्य की उत्तम पूंजी साथ हो तो ऐसी कोई शक्ति नहीं, जो जाप आराधना की पर्णता में बाधक सिद्ध हो सके। प्र.634.मंत्र के स्वरूप एवं प्रभाव पर प्रकाश डालिये। उ. मंत्र योग साधना का महत्त्वपूर्ण अंग एवं महाविज्ञान है। मंत्र अर्थात् जिसका पुनः पुनः मनन किया जाये। मंत्र चमत्कारिक शक्तियों का भण्डार है। प्राचीन और अर्वाचीन काल में मंत्र साधना का महाप्रभाव सर्वविदित है, जिससे महर्षि स्वलक्ष्य और इष्ट को उपलब्ध करते आये हैं। चौदह पूर्त में से विद्याप्रवाद पूर्व में मंत्र की स्वरूप, संरचना और प्रभावों का ही वर्णन था परन्तु काल प्रभाव से आज लुप्त हो चुका है। शास्त्रों, वेदों, पुराणों आदि में वर्णित अनेक युद्ध मंत्रों के द्वारा लडे गये हैं। महाभारत के युद्ध में मंत्र शक्ति के द्वारा जिन आयुधों का प्रयोग किया गया था, वर्तमानस्थ मिसाइल्स, अणुबम से उनकी तुलना की जा सकती है। श्री विशुद्धानन्द ने मृत कबूतर को **************** 285 मंत्र शक्ति से देखते देखते जीवित कर दिया था। नवकार व दादा गुरूदेव मंत्र के चमत्कार प्रसिद्ध है। इसलिये मंत्र को ब्रह्मा भी कहा गया है। शाप हो चाहे वरदान, दोनों मंत्र शक्ति के ही प्रतिफल है। यहाँ तक की मंत्र के माध्यम से जीव मोक्ष तक प्राप्त कर लेता है। जर्मनी के प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री अरनेस्ट क्लानडी ने वायलिन वादन के अनेक प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिखाया है कि हर स्वर, नाद, कम्पन, लय, संगीत विशेष आकार को जन्म देता है। जब जड पदार्थ पर भी मंत्र स्वरों का इतना प्रभाव है तो सचेतन प्रभावित हो, इसमें अतिशयोक्ति को कोई स्थान नहीं है। मंत्र साधना में स्थान का भी प्रभाव हम देखते हैं। शत्रुजय आदि पावन स्थानों पर साधक शीघ्र ही अभीष्ट को सिद्ध कर लेता है। प्र.634. मंत्र से क्या अभिप्राय है? उ. 1. सतत् मनन करने से जो अक्षर हमारी रक्षा करते हैं, उन अक्षरों को मंत्र कहा जाता है। 2. देव द्वारा अधिष्ठित-प्रतिष्ठित अक्षरों की दिव्य संयोजना को **** *********

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