Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

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Page 310
________________ पच्चीस गुणों का ध्यान धरे एवं ज्ञान गुण में डूबकी लगावे। (V)साधु ध्यान- साधु के सत्ताईस गुणों से एवं चारित्र की महिमा से हृदय को ओतप्रोत करें। प्र.632. महाराजश्री! मैं बहुत ही जल्दी अपने प्रति अविश्वास से भर जाता हूँ। थोड़ी-सी कहीं असफलता हाथ लगती है या सपना साकार नहीं हो पाता है, मेरा मन हीनता से भर जाता है तो क्या ध्यान की प्रक्रिया इस बीमारी में कहीं उपयोगी साबित हो सकती है? ध्यान का अर्थ है कि शान्ति प्राप्त करना। जीवन सुख और दुःख का, धूप और छाँव का मिलन है। सुख और छाँव को व्यक्ति जितना आनंद से स्वीकार करता है, दुःख की धूप में प्रायः उतना ही असंतुलित हो जाता। है। हर बार सफलता मिले, जरूरी नहीं, असफलता भी मिलती है। उस वक्त हीनता, तनाव और चिंता की ग्रन्थियाँ उसके मनोबल को तोड़ देती हैं। ध्यान एक ऐसी अनूठी विधा है, जो चित्त को स्थिर, सहज एवं धीरज देती है एवं मनोबल बढ़ाती है। प्रयोग- पद्मासन, अर्द्धपद्मासन, उ. किसी भी आसन में बैठो। ध्यान रहे मेरूदण्ड सीधा हो, वातारण शान्त हो, मन प्रशान्त हो। अब पूरक, रेचक और कुंभक करें, जिससे श्वास-उच्छवास संतुलित एवं सहज हो जाये। श्वासोच्छ्वास की अनियमितता (कभी धीरे कभी तेज) व्यक्ति को असहज बनाती है। तत्पश्चात् मन की ओर मुड़ो। अन्तर्मुखी होना प्रारंभ करो- मेरी इच्छा शक्ति प्रबल है। कोई भी समस्या उसे हिला नहीं सकती है। मेरा मनोबल मजबूत है। मैं परिस्थितियों का स्वामी हूँ। कोई भी परेशानी मुझे अस्थिर नहीं कर सकती। मेरे मन को तनाव एवं चिन्ता से नहीं भर सकती है। मेरी हीनता की सारी ग्रन्थियाँ नष्ट हो रही हैं। मेरा आत्मविश्वास बढ़ रहा है। मेहनत करना मेरा धर्म है, फल भाग्य का परिणाम है। सफलता और असफलता, दोनों जिन्दगी के अहम् हिस्से हैं। आज असफल हूँ तो क्या हुआ? सफलता मेरे भीतर छिपी है। कल जरूर प्रकट होगी। मैं अपने उज्ज्वल भविष्य का निर्माला हूँ। मुझे स्वयं पर पूरा भरोसा है। मेरा

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