Book Title: Jain Jivan Shailee
Author(s): Manitprabhsagar, Nilanjanashreeji
Publisher: Jahaj Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ सम्यक्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तर्जनी के मध्य का, नमो - तप, ये नवपद शाश्वत पद हैं। इन उवज्झायाणं का मध्यमा के नीचे पदों की आराधना करके अनन्त का, नमो लोए सव्वसाहूणं का जीव संसार सागर से उत्तीर्ण हो अनामिका के मध्य का, ऊँ ह्रीँ नमो गये। श्रीपाल और मयणा सुन्दरी ने दंसणस्स का तर्जनी के ऊपर सविधि और सश्रद्धा नवपद की का, ऊँ ह्रीँ नमो नाणस्स का तर्जनी साधना की, जिससे श्रीपाल का के नीचे का, ऊँ ह्रीँ नमो चरित्तस्स कुष्ठ रोग विनष्ट हो गया तथा का अनामिका के नीचे का एवं ऊँ ह्रीं काया कंचन की भांति चमक उठी। नमो तवस्स का अनामिका के ऊपर यह अनुभूत सत्य है कि नवपद के का पोरवा, इस प्रकार सिद्धचक्र महान् अनुष्ठान से सारे विघ्न, पद का बारह बार जाप करने से बाधाएँ क्षणार्ध में समाप्त हो जाती हैं एक माला पूर्ण होती है। प्र.628.सिद्धावर्त किस प्रकार किया और जीवन में आनन्द, धैर्य, समता जाता है? एवं साधना की बहार छा जाती है। स्वरूप- यह आवर्त जाप दोनों विधि- इसकी आराधना नवपद / हाथों की अंगुलियों के पोरवों पर नवकार की भाँति ही होती किया जाता है। है परन्तु पदों में यह जाप मुक्ति प्रदायक है। यह परिवर्तन होता है। इसके जाप चौबीस पोरवों पर होने से जाप | सुप्रसिद्ध पदों के नाम करने वाला चौबीस तीर्थंकरों की कृपा क्रमशः इस प्रकार है- प्राप्त करता हुआ आत्मिक गुणों को (1-5) नमो अरिहंताणं प्रकट करता है। इससे विघ्न आदि पाँच पद (6) ऊँ ही नमो उपशान्त हो जाते हैं। यम-नियमदसणस्स (7) ऊँ ह्रीं नमो नाणस्स संयम तथा ज्ञान-ध्यान के क्षेत्र में (8) ऊँ ही नमो चरित्तस्स (9) ऊँ ह्रीँ व्यक्ति आत्म विश्वास के सोपान नमो तवस्स। चढता हुआ अन्तिम सिद्धपद का 1. नमो अरिहंताणं एवं नमो सिद्धाणं वरण करता है। इस आवर्त से नौ का मध्यमा के मध्य व ऊपर का. बार जाप करने पर नवकार की दो पोरवा, नमो आयरियाणं का माला पूर्ण होती हैं। CTT LOGO)

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346