________________ लेश्या-विज्ञान प्र.380. लेश्या किसे कहते है ? / अच्छा - बुरा, मोह-निर्मोह, द्वेषउ. वस्तु अथवा शरीर की कान्ति व प्रभा प्रेम, त्याग-भोग का भावमण्डल को लेश्या कहा जाता है। तैयार होता है और वह अन्य को जिस प्रकार पदार्थ का वर्ण होता है, प्रभावित करता है। जिसे कान्ति/प्रभा के नाम से जाना यह देखा गया सत्य है कि किसी जाता है, उसी प्रकार मनोगत विचारों तमोगुणी व्यक्ति की नेत्रों से निकलने की भी आभा/प्रभा होती है। विज्ञान वाली तामसिक किरणों के प्रभाव से जिसे 'ओरा' (आभामण्डल) कहता है, प्रौढ, बालक रूग्ण हो जाते हैं, जिसे उसे जैन दर्शन में 'लेश्या' कहा गया 'नजर लगना' कहा जाता है। कहा जाता है कि नजर (कदष्टि) से प्र.381. लेश्या का वैज्ञानिक स्वरूप पत्थर में भी दरार आ जाती है। समझाईये। सत्वशाली व्यक्ति के सानिध्य में लेश्या एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। सात्त्विक विचार तथा तामसिक-- जिस प्रकार रिमोट कंट्रोल के अलग- राजसिक - विलासी तथा क्रोधी अलग बटन दबाने से चैनल, रंग, व्यक्ति के पास बैठने से वैसे विचार आवाज आदि बदल जाती है। इन बनेंगे। सभी में कारण उस यंत्र से निकलने प्र.382.व्यक्ति के विचार (आभामण्डल) वाली अगोचर तरंगे हैं। भला एक दूसरे को किस प्रकार इसी प्रकार आभामण्डल का भी अपना प्रभावित कर सकते हैं? प्रभाव है। वर्तमान में मानसिक रोगी उ. विचारों के अनुरुप व्यक्ति के चारों की भिन्न-भिन्न वर्गों की किरणों एवं तरफ एक वर्तुल बनता है, जिसका जल की बोतलों के द्वारा चिकित्सा वर्ण, चमक, कान्ति, मलिनता अथवा की जाती है। निर्मलता विभिन्न यंत्रों के द्वारा देखी निमित्तों को प्राप्त कर जीव के जा सकती है। शुद्ध विचार चमकदार/ अध्यवसाय बदलते हैं। तदनुरूप निर्मल / शुभ्र / शुक्ल आभामण्डल ******* ***** 137 **** * * ** ***