________________ कैसा हो घर-गाँव हमारा प्र.559. जैन श्रावक को कैसे गाँव/नगर में निवास करना चाहिये? उ. भारत की अहिंसक संस्कृति और मर्यादापूर्ण जीवन व्यवस्था पर जैसे-जैसे पाश्चात्य संस्कारों एवं आधुनिकता की काली परछायी पड़ने लगी है, वैसे-वैसे विनय, नियम, लोक-लाज, अनुशासन जैसे गुणों का खुले आम कत्ल हो रहा है। फैशन के रंग में रंगी आज की पीढी के लिये आदर्श महावीर, राम और महात्मा गांधी न होकर नेताअभिनेता बन गये हैं, जिनमें न सभ्यता है, न संस्कार एवं चारित्र। पिछले एक दशक में ग्रामीण सभ्यता का जिस गति से ह्रास हुआ है, वह खतरे की लालबत्ती है। पैसा, सत्ता, सम्पत्ति, सुविधाओं के जाल में फंसा व्यक्ति शहर की ओर भागा जा रहा है और संस्कारों की गरिमा को गंवाता जा रहा है। आजीविका आदि कारणों से एक श्रावक को यदि परम्परा से चले आ रहे घर-गाँव को छोड़ना पडे तो वह ********* *** 228 भी कहाँ, किस नगर में रहना? इस प्रश्न पर पचास बार सोचता है। श्राद्ध विधि प्रकरण में कहा गया है कि श्रावक ऐसे नगर में निवास करें, जहाँ जिनमंदिर और पौषधशाला हो, मुनि भगवंतों के चातुर्मास होते हो, विद्वान् एवं सज्जन व्यक्ति बसते हो, जैनी, गुणी एवं संस्कार सम्पन्न लोगों का सानिध्य, मार्गदर्शन प्राप्त होता हो। जीवन निर्वाह के साथ-साथ जीवन निर्माण की भी भरपूर सम्भावनाएँ हो, शील को कोई खतरा न हो, आतंकवादी, चोर एवं फरेबी लोग जहाँ न हो, वहाँ जैन श्रावक को रहना चाहिये। इसी प्रकार.गृह स्थिति के सन्दर्भ में बताते हुए मुनीश्वर कहते हैं कि घर ऐसे स्थान पर हो कि जहाँ उपद्रव न हो अथवा उपद्रव होने पर जीवन सुरक्षा की संभावना हो, निकट ही जिनालय, उपाश्रय हो, मुनि भगवंतों के प्रवचन व तत्त्व श्रवण का पुनः-पुनः लाभ प्राप्त होता हो, सुपात्र दान एवं साधर्मिक भक्ति का लाभ ***** * **** **