________________ का का विच्छेद कैसे हुआ? नामक उपधि रखने की जिनाज्ञा नहीं भगवान महावीर के निर्वाण के 170 है तथा आगम लेखन तथा उनके वर्षोपरान्त श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु रख-रखाव में जीव हिंसा होने से का स्वर्गवास होने पर अंतिम चार पूर्व संयम दूषित होता है। इन कारणों से अर्थ की दृष्टि से विच्छेद को प्राप्त हो सुविधा होने पर भी लेखन संभव न हो गये। आचार्य स्थूलिभद्र के साथ ये सका। चार पूर्व शब्द से भी विलुप्त हो गये। प्र.589. तो फिर आगम लेखन विधा का वज्रस्वामी तक दस पूर्व, दुर्बलिका प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ? पुष्यमित्र तक नौ पूर्व ही रहे और उ. पूर्व में श्रुति परम्परा थी, साधु क्रमशः देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण तक पूर्व श्रवणपूर्वक सूत्रों को स्मृति में रखते थे विच्छेद होता रहा। देवर्द्धिगणि स्वयं परन्तु काल-प्रभाव से स्मृति बल क्षीण एक पूर्व के ज्ञाता थे। होता गया तब देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण पूर्व ज्ञान-विच्छेद के कारण ने जिनवाणी सुरक्षा हेतु दूरदर्शिता (1)बारह-बारह वर्षों के भयंकर पूर्वक आगम लेखन का प्रशंस्य/ दुष्काल में अनेक श्रुतकेवली काल स्तुत्य कदम उठाया। - कवलित हो गए। प्र.590. बारह उपांग सूत्रों में किस विषय (2)निर्दोष भिक्षा दुष्कर होने से ज्ञानी की विवेचना की गयी है? साधु अनशन कर स्वर्गवासी बन उ. बारह उपांग आगमगये। .. (1)औपपातिक सूत्र- आचारांग के (3)राजा-महाराजा जैन धर्म-विरोधी इस उपांग सूत्र में देव, नारकी का थे। उनके कारण अनेक विशिष्ट औपपातिक जन्म, मोक्ष आदि का ज्ञानी स्वर्गवासी हो गए। रोमांचक विवेचन है। प्र.588. तो क्या हुआ महाराजश्री! आगमों (2) राजप्रश्नीय सूत्र- सूत्रकृतांग के का लेखन भी तो संभवित था? इस उपांग सूत्र में राजा प्रदेशी को उ. प्रभु महावीर ने लेखन-कला का केशी. गणधर का धर्मबोध, निषेध किया है क्योंकि उससे सूर्याभदेव द्वारा समवसरण रचना, स्वाध्याय में प्रमाद आता है, पुस्तक बत्तीस प्रकार के नाटक इत्यादि **************** 247 ****************