________________ में प्रसिद्ध हैं। के लिये कठिन होने से अनेक (3)चूर्णि - चूर्णियों की रचना भाष्य आचार्यों, मुनियों ने सरल संस्कृत के उपरान्त हुई। इनकी रचना भाषा में टब्बों की रचना की। गद्यात्मक तथा भाषा प्राकृत- प्र.596.आगमों का अनुवाद कितनी संस्कृत मिश्रित है। यद्यपि जैन भाषाओं में हो चुका हैं? दर्शन में श्रद्धा की प्रधानता है उ. हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी में। आंग्ल तथापि चूर्णियों में तर्क प्राधान्य तौर भाषा में जर्मन विद्वान् डॉ हर्मन पर दृष्टिगत होता है। जेकोबी ने आचारांग, सूत्रकृतांग, प्रमुख चूर्णिकार जिनदासगणि महत्तर उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र, इन चार हुए। इनके अतिरिक्त सिद्धसेनसूरि, का अनुवाद किया हैं। इसके प्रलम्बसूरि, अगत्स्य सिंह स्थविर अतिरिक्त भी अनेक आगमों का इत्यादि प्रसिद्ध हैं। अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है। हिन्दी, (4)वृत्ति (टीका)-वृत्ति साहित्य में गुजराती में समस्त आगम अनुवादित आगम विवेचना के साथ जैनेतर हो चुके हैं। दर्शनों का भी वर्णन है। परमत प्र.597.आगम कितने माने जाते हैं ? खण्डन एवं स्वमत मण्डन से युक्त उ. श्वेताम्बर परम्परा में मूर्तिपूजक वृत्तियाँ संस्कृत भाषा में लिखी परम्परा पैतालीस आगमों को मानती गयी। . है। स्थानकवासी एवं तेरापंथी जिनभद्रगणि क्षमाक्षमण, हरिभद्रसूरि, परम्परा, जिन आगमों में मूर्तिपूजा का शीलांकाचार्य, वादिवेताल शान्तिसूरि, विशेषतः उल्लेख है, उन्हें मूल वाणी अभयदेवसूरि, मलयगिरि, मलधारी नहीं मानती है। वह बत्तीस आगमों को हेमचन्द्र आदि अनेक आचार्यों ने गहन मानती है। दिगम्बर परम्परा एक भी पाण्डित्य एवं अनुपम मेधा से परिपूर्ण आगम को मूल वाणी नहीं मानती है। वृत्तियों का निर्माण किया। आगम के उसे कुंदकुंदाचार्य रचित समयसार, अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थों पर नियमसार, षट्खण्डागम आदि ही भी टीकाएँ लिखी गयी। मान्य हैं। (5)टब्बा - वृत्ति की भाषा जनसामान्य ******* 25] **-*-*-**-*-*-*-*-*-*-**-* *