________________ 2. चंदन पूजा- कषायों की दाहकता मिटाकर समभाव की शीतलता पाने के लिये। 3. पुष्प पूजा- आत्मा में गुणों की ___सुरभि फैलाने के लिये। 4. धूप पूजा- धूप-घटा की भाँति उर्ध्वगति को प्राप्त करने के लिये। 5. अक्षत पूजा- अक्षय पद प्राप्त __करने के लिये। 6. दीप पूजा- केवलज्ञान का आलोक - प्रकट करने के लिये। 7. नैवेद्य पूजा- रसनेन्द्रिय पर विजय प्राप्त करने के लिये। ___8. फल पूजा - मोक्षरूपी फल की प्राप्ति के लिये। . प्र.420.अष्टप्रकारी पूजा में क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिये। उ. 1. प्रक्षाल में जयणापूर्वक जल प्रयोग करना चाहिये। प्रक्षाल का जल पाँचों में न आवे एवं जीव उसमें गिरकर न मरे, इसका पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिये। बाद में निरवद्य (जीवरहित) स्थान में उस प्रक्षाल जल को परठना चाहिये। 2. चंदन ऐसा न हो कि प्रतिमा पर रेले उतरे अतः गाढ़े चंदन से पूजा करनी चाहये परन्तु प्रतिमा के नाखून का स्पर्श कदापि नहीं होना चाहिये। प्रतिमा के लिये हानिकारक होने से केसर का उपयोग कम से कम करना चाहिये। 3. पाँव में आये हुए, मुरझाये एवं सूंघे हुए पुष्पों से प्रभु-पूजा नहीं करनी चाहिये। 4. फूलों को पानी से धोना नहीं चाहिये, इस प्रकार की क्रिया से विराधना की पूर्ण संभावना है। 5. फूलों को सुई से कभी भी बिंधना नहीं चाहिये। उनकी पंखुड़ियाँ भी अलग-अलग नहीं करनी चाहिये। 6. यदि धूप पूर्व में प्रकट हो तो नया नहीं जलाना चाहिये। 7. धूपदानी को भगवान के बायीं तरफ स्थापित करना चाहिये। 8. दीपक खुला नहीं छोडना चाहिये क्योंकि उसमें विविध कीट-पतंग आदि जीव गिरकर मर जाते हैं। 9. सडे हुए नेवैद्य से पूजा नहीं करनी चाहिये। अभक्ष्य जैसे बासी पदार्थ, चॉकलेट, बाजार की बनी मिठाई नहीं चढानी चाहिये। मखाणा, मिठाई के टुकड़े आदि मधुर पदार्थों को पाउच में पैक करके चढाने चाहिये वरना उसके कारण चींटी आदि की अजयणा का पाप लग सकता