________________ 10.आर्द्रा नक्षत्र लगने के बाद आम, नीचे रात्रि में स्वच्छ वस्त्र रख देना फाल्गुन चौमासी के बाद सूखा चाहिये। फिर उस पर जो पुष्प स्वतः मेवा (बादाम के सिवाय) त्याज्य खिर जाये, उस पुष्प से प्रभु की होने से प्रभु पूजा में उसका सर्वथा पूजा करनी चाहिये। निषेध करना चाहिये। प्र.422.प्रभु के सम्मुख स्वस्तिक, सिद्धशिला 11.आंगी आदि में हिंसाजन्य वरक का का निर्माण क्यों किया जाता है? उपयोग कदापि नहीं करना उ. स्वस्तिक चार गतियों का प्रतीक है चाहिये। एवं उनसे मुक्त होने का उपाय है12.चंदन व केसर का आवश्यकता- सम्यक्ज्ञान-दर्शन-चारित्र। अतः अनुसार ही उपयोग करना चाहिये। उसके उपर रत्नत्रयी स्वरूप तीन 13.सबसे पहले प्रभु की, तत्पश्चात् ढेरियों का निर्माण किया जाता है। इस दादा गुरू आदि गुरु भगवंतों की .. रत्नत्रयी की आराधना के द्वारा एवं अन्त में देव देवी की पूजा सिद्धशिला की प्राप्ति संभव है। उसके करनी चाहिये। सिद्धचक्र की पूजा प्रतीक स्वरूप अर्द्धचन्द्राकार में प्रभु–पूजा से पूर्व भी की जा सकती। सिद्धशिला की रचना की जाती है। प्र.423.स्वस्तिक आदि अक्षत के ही क्यों 14.अष्टमंगल की पूजा नहीं करनी बनाये जाते हैं? चाहिये / वह प्रभु के समक्ष स्थापित उ. छिलके रहित चावल को बोने पर वह करने के लिये है। अंकुरित नहीं होता है, उसी प्रकार य इधर-उधर न राग-द्वेष के बीजों को नष्ट करके देखकर जयंणा का पालन करना जन्म-मरण से मुक्त होने के लिये चाहिये व मधुर स्वर में दोहों का स्वस्तिक आदि अक्षत से बनाये जाते उच्चारण करना चाहिये। हैं। 16.भगवान की दृष्टि न पडे, इस तरह प्र.424. मुखकोश बांधकर ही प्रभु पूजा खडे होकर तिलक करना चाहिये। क्यों की जाती है? प्र.421.पुष्प पूजा का शास्त्रीय विधान उ. हमारा शरीर मल, अशुचि और गंदगी बताओ। से भरा हुआ है अतः हमारे श्वासोच्छ्वास उ. शास्त्रों में कहा गया है कि पौधे के की दुर्गंध को रोकने के लिये अष्टपड **** ****** 152 ***************