________________ आदि देना, रोगी को दवाई देना। आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा राष्ट्र एवं समाज के हित में समय करते ही जीवन-लीला का अन्त के अनुरूप धन, शक्ति, बुद्धि आदि करने वाला तूफान कुछ पलों में ही का नियोजन करना उचित दान शांत हो गया। कहलाता है। बारह प्रकार के तप का विवेचन अलग प्र.481.शील से क्या अभिप्राय है? से किया गया है। उ. अब्रह्म का सर्वथा त्याग करना अथवा प्र.482.भावना किसे कहते है? परनारी (पर पुरूष) का त्याग करना। उ. चित्त की स्थिरता के लिये किसी तत्त्व पर्यों में संवत्सरी की भाँति व्रतों/ पर बार बार चिन्तन करना भावना है। महाव्रतों में शील की महिमा प्रभु भावना का सामान्य अर्थ तो शुभमहावीर ने फरमायी है। आगमों में अशुभ विचार होते हैं परन्तु धर्म के ब्रह्मचर्य को भगवत्स्वरुप कहते हुए सन्दर्भ में भावना का अर्थ मोक्षमार्ग का तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, चिन्तन, धर्म में अभिवृद्धि एवं कषायों विनय एवं सम्यक्त्व का मूल बताया को निष्कासित करने वाले निर्मल गया है। अनिच्छा से ब्रह्मचर्य का आध्यात्मिक अध्यवसाय/परिणाम किया पालन करने वाला चक्रवर्ती का हाथी गया है। इसका दूसरा नाम अनुप्रेक्षा भी अष्टम देवलोक तक पहुँच जाता है। भी है। शील के प्रभाव से सुभद्रा सती ने प्र.483. भावना कितने प्रकार की कही चंपानगरी के द्वार खोले, सीता का गयी हैं? अग्निकुण्ड जलकण्ड में परिवर्तित उ. निम्नोक्त बारह निर्मल भावनाओं से हुआ, विजयसेठ एवं विजया सेठानी चित्त को प्रभावित करने वाला के शील की महिमा विमल नामक परम-पद को प्राप्त करता है। केवलज्ञानी प्रभु ने गायी, सेठ सुदर्शन (1)अनित्य भावना- भरत चक्री की का त्रिलोक में यशोगान हुआ तथा भाँति पदार्थ, शरीर आदि की पेथडशाह के कम्बल में रोग अनित्यता का चिन्तन करना। विनाशक शक्ति उत्पन्न हुई। वर्तमान (2)अशरण भावना- अनाथी मुनि में सुप्रसिद्ध श्रावक प्राणी मित्र श्री की भाँति संसार में अरिहंत, सिद्ध, कुमारपाल भाई वी. शाह (धोलका) के साधु एवं केवली प्ररुपित धर्म के * ** 178_ ******** **