________________ उ. उतर आता है। धर्मग्रन्थ, सद्गुरू "और अच्छी पुस्तकों से अच्छा मित्र दिन में दीपक लेकर खोजोगे तो भी मिलना असम्भव ही है। प्र.550 आप जैन-तत्त्व-बोध की बात करते हैं पर यह वर्तमान में कितना प्रासंगिक है? जब तक व्यक्ति को आत्म-दर्शन एवं तत्त्व बोध नहीं होता है, तब तक वह परिस्थितियों से प्रभावित, बेचैन एवं तनावग्रस्त रहता है, यहाँ तक कि आत्म-हत्या कर बैठता है परन्तु जिसने महाश्रमण महावीर के दर्शन को गहराई से समझा है, वह न तो अनुकूलता में फूलता है, न प्रतिकूलता में फटता है। वह हर स्थिति में अप्रभावित रहता है। कदाच तनाव व दुःख उसके पास आ जाये पर वह तुरन्त तात्त्विक समझ से पूर्वकृत कर्मों का फल एवं संसार की भयावहता का चिंतन करके उनसे पीछा छुड़ा लेता है एवं आत्मविश्वास, धैर्य एवं विवेक . का उजाला साथ लेकर अविराम गन्तव्य के प्रति बढ़ता रहता है। प्र.551.विश्व शान्ति की स्थापना में जैन दर्शन की क्या भूमिका हो सकती जैन दर्शन का 'अहिंसा परमो धर्म'' एवं जीओ और जीने दो (Live and Let Live) का सिद्धान्त टूटते घर-परिवार, अशांत राष्ट्र एवं विश्व युद्ध की स्थिति में एक मजबूत नींव एवं पुल का काम कर सकता है। महावीर कहते हैं- शत्रुता से शत्रुता कभी भी समाप्त नहीं हो सकती। यदि कोई पेट्रोल से आग बुझाना चाहे तो यह असम्भव ही है। वैर को प्रेम से. एवं क्रोध को क्षमा से ही जीता जा सकता है। वर्तमान में बढ़ते आतंकवाद, फरेब, हत्या, लूटपाट जैसी समस्याओं का कारण शोषण, अनधिकार, एकाधिकार एवं न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति का अभाव है। जैन दर्शन का अपरिग्रह तत्त्व इच्छाओं के सीमाकरण एवं परिग्रह के अल्पीकरण का उद्घोष करता है। यदि यह तत्त्व जीवन में उतर जाये तो न घर-परिवार में तनाव हो सकता है, न विभिन्न देशों में परस्पर किसी प्रकार का आतंक पनप सकता है।