________________ 4 युक्त दुर्जन का संग त्याज्य है। चोरों के साथ रहने वाला चोरी नहीं करने पर भी पकड़ा जाता है और सजा प्राप्त करता है। मित्र ऐसे नहीं हो कि पंछी की भाँति दाना चुगे और पानी पीकर उड जाये। मित्र तो मछली के जैसे हो, जो जल के अभाव में नहीं जी सकती है। अतः सच्चा मित्र वही है, जो प्रतिकूल एवं दुःखद स्थिति में भी साथ नहीं छोड़ता है एवं . साहस, संकल्प, विश्वास एवं धैर्य को बढ़ाता साहस बढ़ाने वाली, मुसीबत में माँ की भाँति प्रेम-वात्सल्य एवं धैर्य की शिक्षा देने वाली पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिये। इसके साथ अनाथ, गरीब, साधर्मिक, दुःखी एवं वृद्ध लोगों की सेवा व सहयोग में समय का सदुपयोग किया जा सकता है। आस-पास रहने वाले बालकों को सुन्दर कथाएँ, प्रेरणास्पद प्रसंग सुनाकर उन्हें जीवन की शिक्षा भी दी जा / सकती है। कलाई पर बंधी घड़ी समय ही नहीं बताती, समय के साथ चलने की प्रेरणा भी देती है। जो व्यक्ति अचेत रहता हुआ समय पर उसका सदुपयोग नहीं करता है, वह उस कृषक की भाँति पश्चात्ताप करता है जो चिड़िया के खेत चुग जाने के बाद सजग होता है। . प्र.549.संगति का महत्त्व क्यों कहा गया है? उ. बताईये! एक टोकरी में रखे हुए पाँच आमों में से सड़ा हुआ एक आम क्या सारे आमों को खराब नहीं करता है? अवश्य करता है। इसी प्रकार दुर्जन की संगति कदापि नहीं करनी चाहिये / शास्त्रों में कहा गया हैदुर्जनः परिहर्त्तव्यः, विद्याऽलंकृतोऽपि सन्। मणिना भूषितः सर्पः, किंसः नास्तिभयंकरः / / मणि से विभूषित सर्प की तरह विद्या ****** ******** 218 जिनधर्म के प्रति श्रद्धावान्, शीलवान्, तत्त्वज्ञ, दुःख में भी धर्म को नहीं छोड़ने वालों एव कल्याण मित्र की 'भांति निष्काम–निःस्वार्थ सहायता करने वालों का हमेशा सत्संग करना चाहिये। अभयकुमार ने आर्द्रकुमार को धर्म की राह दिखाकर दोस्ती निभाई। श्रीकृष्ण ने सुदामा को गले लगाकर संदेश दिया कि गरीब दोस्त का भी साथ निभाओ। महापुरुषों ने सत्संग को पारसमणि की उपमा दी है। जिस प्रकार पारसमणि का स्पर्श पाकर लोहा स्वर्ण बन जाता है, उसी प्रकार सत्संग पाकर आत्मा परमात्मा बन जाती है। उसके जीवन में स्वर्ग ****************