________________ धर्म के चार प्रकार प्र.479.धर्म के चार प्रकार कौनसे हैं? उ. (1)दान (2) शील (3) तप (4) भावना। प्र.480.दान कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. (1)अभयदान-समस्त दानों में अभयदान श्रेष्ठ है। अभयदान से पाँचों दानों का लाभ मिल जाता है। विपत्तिग्रस्त व्यक्ति की सहायता करना, समस्त जीवों पर करूणा भाव रखना, किसी भी जीव को सताना अथवा मारना नहीं, यह अभयदान है। अभग्नदान से धर्म रुचि अणगार एकावतारी देव बने, मेघरथ राजा अभयदान से भगवान शान्तिनाथ बने। (2)सुपात्रदान- गुणयुक्त साधु साध्वी भगवंतों को शुद्ध वस्त्र, पात्र, आहार आदि प्रदान करना। आदिनाथ व महावीर प्रभु सुपात्रदान से सम्यक्त्वी बने। संगम ग्वाला उलट भाव से आहार प्रदान करके शालिभद्र बना। (3)अनुकंपा दान- गरीब, दीन हीन, असहाय की यथाशक्ति सहायता करना। जैसे जगडूशाह ने दुष्काल में भूखे लोगों के लिये अन्न दान किया। (4)कीर्तिदान- शासन के उत्कर्ष हेतु जनकल्याण में धनादि देना। जिनशासन की कीर्ति के लिये पूर्वजों की स्मृति में अथवा स्वयं की प्रतिष्ठा के लिए अस्पताल, विद्यालय आदि बनवाना। यद्यपि दान में कीर्ति की भावना होती है तथापि समाज को लाभ होने के कारण इसे दान कहा गया है। भूमिदान, रक्तदान, नेत्रदान आदि अनेक दान प्रचलित हैं। दान में यश की कामना न रखकर परोपकार एवं सहयोग की ही भावना रखनी चाहिये क्योंकि हर प्राणी मेरा बंधु और आत्मीय है। जो व्यक्ति इस तन-मन-धन को जनकल्याण, आत्मकल्याण एवं सम्यक् ज्ञान के प्रचार-प्रसार में लगाते हैं, वे इतिहास के पन्नों पर अमर हो जाते (5)उचित दान- परिस्थिति के अनुसार दान देना। जैसे भूखे को रोटी देना, विद्यार्थी को पुस्तक