________________ रखकर भोजन नहीं करना चाहिये। है। बाह्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि का एक थाली में साथ मिलकर एवं असर भी इन दिनों में अधिक एवं तीव्र दीवार का सहारा लेकर आहार न गति से होता है। करें। इन पर्व तिथियों में हरी वनस्पति के प्र.498. पर्व तिथि को हरी सब्जी, फलादि निषेध का कारण यही है कि शरीर में का ही त्याग क्यों किया जाता है जलीय तत्त्व का संतुलन नहीं बिगड़े जबकि सूखी सब्जी में भी जीव तो एवं मानव-मन स्वस्थ तथा होते ही हैं? उत्तेजना-मुक्त रह सके। यद्यपि हरी और सूखी, दोनों ही सब्जी जैन भोजन शैली में हरी वनस्पतिसचित्त है, तथापि मानसिक एवं शारीरिक त्याग के अतिरिक्त इन दिनों में स्वास्थ्य की अपेक्षा से जैन जीवन पौषध, उपवास, जप, तप, ध्यान आदि पद्धति में पर्व तिथियों में हरी वनस्पति धर्मानुष्ठान विशेष रूप से किये जाते के त्याग का उपदेश दिया गया है। हैं ताकि समुद्री तूफान के कारण आने इन पर्व तिथियों में चन्द्र, सूर्य और वाले मानसिक तूफान, आवेश एवं पृथ्वी एक सीधी रेखा में होने से जिस विक्षिप्तता से अप्रभावित रहा जा प्रकार समुद्र में तीव्र आड़ोलन होने से सके। भारी ज्वार-भाटा आता है, उसी प्र.499.स्वास्थ्य के संदर्भ में भी जानकारी प्रकार मानव मन एवं भावनाएँ भी दीजिये? अत्यधिक आंदोलित होती हैं। उ. संयमित व संतुलित भोजन स्वास्थ्य मस्तिष्क एवं स्नायुतन्त्र भी प्रभावित का कारण है। यदि स्वास्थ्य ठीक होते हैं। होगा तो प्रभु भक्ति, स्वाध्याय आदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहता है कि . मोक्षानुष्ठान भी सध सकेंगे। मानव शरीर में 70 प्रतिशत जलीय स्वास्थ्य के सन्दर्भ में कहा गया हैतत्त्व है और इन दिनों में मानसिक पेट नरम पांव गरम, सिर को राखो ठंडा / स्थिति में असंतुलन होने से व्यक्ति फिर आवे वैद्यराज तो, उसको मारो डण्डा।। शीघ्र ही क्रोध, तनाव, चिन्ता, बेचैनी, इसका अर्थ है कि जिसका पेट नरम, उद्वेग से भर जाता है। यह तो पाँव गरम. और दिमाग ठण्डा, प्रमाणित हो ही चुका है कि रोगी इन सन्तुलित रहता है, उसको दिनों में विशेष रूप से परेशानी झेलता चिकित्सक की आवश्यकता नहीं