________________ रात्रिशयन से पूर्व आत्म-चिंतन प्र.491.शयन विधि को विस्तार से का कारण बनता है। समझाईये। 7. सोते-सोते तांबूल चबाना, पढ़ना उ. 1. सूर्यास्त से एक प्रहर बाद सोना अशुभ होता है। चाहिये। 8. ललाट पर तिलक रखकर नहीं 2. वृद्ध के लिये चार घण्टे की, युवा सोना चाहिये। के लिये छह घण्टे की एवं बालक 9. सप्त-भय के निवारण के लिये के लिये आठ घण्टे नींद पर्याप्त सोते समय सात नवकार गिने। होती है। नींद घटाने से घटती है प्र.492.शयन किस मुद्रा में करना एवं बढ़ाने से बढ़ती है इसलिये चाहिये? शास्त्रों में कहा गया है कि जिसकी उ. कहा जाता है-उल्टा सोये भोगी, नींद, कषाय, परिग्रह और आहार, सीधा सोये योगी, डाबा सोये निरोगी ये चारों कम हैं, उसका भवभ्रमण और जीमणा सोये रोगी। अतः कम ही रहा है, ऐसा जानना स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार बायीं चाहिये। करवट सोना चाहिये। उल्टा सोने से 3. मस्तक और पाँव की तरफ दीपक नेत्र रोग होता है। नहीं होना चाहिये एवं बिस्तर प्र.493. शयन करते समय किस दिशा में दीवार से एक या दो हाथ दूर होना पाँव एवं मस्तक होना चाहिये? * चाहिये। शास्त्रकार कहते हैं- पूर्व दिशा में 4. संध्या काल में और शय्या पर मस्तक रखकर सोने से विद्या-लाभ बैठे-बैठे नींद लेना अशुभ होता होता है, बुद्धि बढ़ती है। दक्षिण दिशा है। में मस्तक रखकर सोने से धन और 5. हृदय पर हाथ रखकर, छत के स्वास्थ्य का लाभ होता है। पश्चिम पाट (बीम) के नीचे एवं पाँव पर दिशा में मस्तक रखकर सोने से चिंता पाँव चढ़ाकर नहीं सोना चाहिये। बढ़ती है तथा उत्तर दिशा में मस्तक 6. पाँव की ओर की शय्या ऊँची नहीं रखकर सोने से ज्ञान, बुद्धि, धन आदि होनी चाहिये। इससे रक्त प्रवाह की हानि एवं मृत्यु होती है। दक्षिण विपरीत दिशा में होने से बीमारियों दिशा में दुष्ट देवों का वास कहा गया *************** 183 ****************