________________ श्रावक जीवन की साधना प्र. 464. श्रावक किसे कहते है? उ. () श्रा अर्थात् जिनोक्त तत्त्व का श्रवण कर श्रद्धा करना। (ii) व अर्थात् विवेक, हिताहित का ज्ञान प्राप्त करना। (iii) क अर्थात् जिनाज्ञानुसार क्रिया __ करना। . शास्त्रों में श्रावक को श्रमणोपासक कहा गया है श्रमणोपासक अर्थात् जो श्रमण की उपासना, सेवा करता है एवं आज्ञा को धारण करता है। प्र.465. श्रावक कितने प्रकार के कहे गये द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा न करना। (2)स्थूल मृषावाद विरमण व्रत (सत्य)- किसी के प्राण चले जाये, नुकसान हो जाये, ऐसा बड़ा झूठ नहीं बोलना। (3)स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत (अचौर्य)- बड़ी चोरी नहीं करना। (4)स्थूल मैथुन विरमण व्रत (ब्रह्मचय)अपनी पत्नी (पति) में संतोष करना। परस्त्री-परपुरूषगमन का त्याग करना। (5)स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत (अपरिग्रह)- सोना-चांदी, दुकानमकान, हाथी-घोड़ा, दास-दासी आदि का परिमाण निर्धारित करना। (6)दिक् परिमाण व्रत- उर्ध्व अधो, उत्तर आदि दिशाओं में आने-जाने की सीमा का निर्धारण करना। (7)भोगोपभोग परिमाण व्रतखाने-पीने की भोग तथा वस्त्र, गाड़ी आदि उपभोग की वस्तुओं की सीमा निश्चित करना / चौदह नियम धारण करना। (8)अनर्थ दण्ड विरमण व्रत- जिस उ. दो प्रकार के- (1) व्रती श्रावक- जो एक यावत् बारह व्रत ग्रहण करता है, जैसे-आनंद, कामदेवादि श्रावक। (2)दर्शनी श्रावक- जो व्रत धारण करने में असमर्थ होते हुए भी जिन-प्रवचन में परिपूर्ण श्रद्धा से युक्त होते हैं, जैसे- वासुदेव श्रीकृष्ण, सत्यकि विद्याधर, श्रेणिक सम्राट् आदि। . प्र.466. बारह व्रतों की संक्षिप्त जानकारी दीजिये। . उ. (1)स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत (अहिंसा)- निरपराधी जीव की एवं ******** ***** 173