________________ क्रिया से कोई लाभ नहीं होता, पर प्र.467.बिना उपवास के पौषधव्रत करने आत्मा पाप-फल की सजा प्राप्त की जिनाज्ञा है अथवा नहीं? करती है जैसे-चलते-चलते पत्ता उ. सच तो यह है कि इस व्रत का नाम तोड़ दिया, पशु पर प्रहार कर दिया पौषधोपवास व्रत है। इस नाम से ही आदि। इनका त्याग करना। इसके स्पष्ट है कि यह व्रत उपवास सहित लिये किसी पापकारी चीज की प्रशंसा ही होता है। - अनुमोदना नहीं करनी चाहिये। प्र. 468. परन्तु महाराजश्री! बाल, वृद्धादि व्यक्ति किसी मकान के आगे से उपवास नहीं कर पाते हैं तो गुजरता है और प्रशंसा कर बैठता उन्हें भी लाभ मिले, इस हेतु से है। इससे मकान तो नहीं मिलता, एकासन, आयम्बिल करवाया जा परन्तु नरक अथवा गाय-बैल-कुत्ते सकता है? आदि तिर्यंच का भव जरुर मिल जाता उ. बिल्कुल नहीं! इसमें जिनाज्ञा है। विराधना का महान पाप है। यदि कोई (9)सामायिक व्रत- न्यूनतम कहे कि मुझे प्रतिदिन एक कप चाय अड़तालीस मिनट तक समस्त पाप मिल जाये तो मैं मासक्षमण कर क्रियाओं का त्याग करके समता की सकता हूँ तो क्या ऐसा करवाना साधना करना। उचित होगा? लाभ जिनाज्ञा पालन में (10)देशावगासिक व्रत- स्थानमर्यादा है, अति की कल्पना में उल्लंघन है। पूर्वक तीन से पन्द्रह सामायिक लेना। बालकों की पुनः पुनः सामायिक व्रत (11) पौषधोपवास व्रत- एक दिन, के द्वारा भी आराधना संभव है। एक रात अथवा एक रात- प्र.469. तो फिर आपके गच्छ में उपधान दिन उपवास सहित साधुवत् जीवन तप की आराधना में पौषध में जीना। एकासना कैसे करवाया जाता है ? (12)अतिथिसंविभाग व्रत-उपवास / - उ. यह समाचारी सभी गच्छों के आचार्यों के पारणे के दिन एकासना करके ने मिलकर बनायी है अतः अपवाद साधु को दोष रहित आहार देना। मार्ग से आचरणीय है। इनमें प्रथम पाँच अणुव्रत, बाद के तीन प्र.470. श्रावक के तीन मनोरथ कौनसे हैं? गुणव्रत, शेष चार शिक्षाव्रत कहलाते उ. (1)आरंभ तथा परिग्रह का त्याग करना / ************** 174 *** ******** *