________________ होता है परन्तु जो अपात्र है, वह हमारे परिणाम में परिवर्तन आने में पक्षपात गृहाँगन में आ जाये तो उसे तिरस्कृत की बुद्धि नहीं अपितु पात्रता के व अपमानित नहीं करना चाहिये। धरातल की पवित्रता एवं योग्यता का यदि दुत्कार, धिक्कार और अपमान- परिणाम है। जनक शब्द बोलते हैं तो कर्म बन्धन प्र.462.शास्त्राकारों ने योग्यता की होता हैं। निषेध करने पर धर्म की न्यूनाधिकता के आधार पर किस निन्दा होगी, इस हेतु दान दिया जाये प्रकार की उपमा दी है? तो पुण्य होता है परन्तु उसमें परमार्थ उ. 1. अरिहन्त परमात्मा - रत्न पात्र अथवा पात्र-सुपात्र दान की बुद्धि के समान। नहीं रखनी चाहिये। 2. मुनि भगवन्त - स्वर्ण पात्र के प्र.461. महाराजश्री! दान की प्रक्रिया / समान। समान होने पर भी तीर्थकर, 3. व्रतधारी श्रावक - रजत पात्र के केवली, मुनि, श्रावक, अपंग और समान। अपात्रादि में कम-ज्यादा पुण्य 4. सम्यकदृष्टि - ताम्र पात्र के / बंध के कथन से क्या पक्षपात की समान। आपत्ति नहीं होगी? 5. अपात्र - लौह पात्र के समान। नहीं! यह स्पष्ट है कि पात्रता का प्र.463. दान के दूषण एवं भूषण कौनसे धरातल बदलते ही परिणाम भी बदल जाता है। यह प्रत्यक्ष सिद्ध है कि उ. 1. मुँह बिगाडकर, अश्रद्धा, अनादर स्वाति नक्षत्र के योग में वर्षा की बूंद . एवं विलम्ब से देना, देने के बाद यदि सीप के मुख में प्रविष्ट होती है तो पश्चात्ताप करना, ये दान को मोती बन जाती है, सागर में गिरकर दूषित करते हैं। खारी, कीचड में गंदी ओर सर्प के मुख 2. प्रिय वचन उच्चारण एवं में जाकर विष रूप बन जाती है अतः बहुमानपूर्वक देना, देते समय रोमकाल सम्बन्धी साम्यता होने पर भी रोम का उल्लास से भर जाना, आधार बदलते ही परिणाम में आंखों में हर्ष के आँसू आना एवं दिन-रात का अन्तर देखा जाता है देने के बाद पुनः पुनः सुपात्र दान उसी प्रकार तीर्थंकर आदि के दान की अनुमोदना करना, ये दान के भूषण हैं। .. .