________________ सुपात्रदान की विधि प्र.454.भोजन करने से पूर्व क्या चिन्तन करना चाहिये? 'काश! मेरे पुण्योदय का प्रकाश फैले और कोई पंचमहाव्रतधारी, निःस्पृह, अनासक्त योगीराज/मुनिराज मेरे गृहाँगण में पधारे और उन्हें वोहराकर मैं भोजन ग्रहण करूँ।' इन भावनाओं से हृदय को ओत-प्रोत करके मुख्य द्वार पर खड़े होकर अथवा भोजनपट्ट पर बैठे-बैठे ही त्यागी निर्ग्रन्थ के आगमन का दो-पाँच मिनट तक इन्तजार करना चाहिये। प्र.455. गोचरी वोहराने की विधि समझाईए / . - उ. (1)गुरुवर के दर्शन होने पर अथवा धर्मलाभ सुनाई देने पर अन्य सारे कार्य छोड़कर विनयादि आचरण हेतु सम्मुख जाये और करबद्ध होकर विनंती करें-पधारिये! लाभ दीजिये। तत्पश्चात् भक्तिपूर्वक गोचरी वहरानी चाहिये। (2)कदाचित् श्रावक घर में न हो तो 'धर्मलाभ' शब्द सुनकर महिलावर्ग मौनपूर्वक अथवा शिष्टाचार पूर्वक विनंती करें और सुपात्र-दान का महान् लाभ संप्राप्त करें। (3)शास्त्रों में एक कर्तव्य यह भी है कि भोजन का समय होने पर श्रावक गृह-द्वार पर खडे रहकर मुनिवर का इन्तजार करें। उनके दर्शन होने पर सादर-सश्रद्धा सुपात्र दान की भावना प्रकट करें। मुनिवर सकारण न आ पाये तो न अत्याग्रह करें, न उन पर रुष्ट होवे। (4)गोचरी वोहराने के लिये सर्वप्रथम बाजोट-चोकी आदि रखें। उस पर जब गुरुवर पातरे रखे तब उनके पातरों को नमस्कार करके क्षणार्ध चिन्तन करें कि कब मैं साधु बनकर घर-घर जाकर शुद्ध, प्रासुक एवं कल्पनीय आहारपूर्वक संयम-यात्रा में आगे बदूंगा। (5)छोटे-बडे, सभी को वोहराना चाहिये। उस समय जल का नल, टी.वी., लाईट, पंखा चालू अथवा बंद न करें। (6)कच्चे पानी, सचित्त फलादि का संघट्टा (स्पर्श) न हो, वोहराते