________________ इसके अन्य लाभ इस प्रकार हैं - प्र.436. चंवर के द्वारा प्रभु के सम्मुख नृत्य 1. वीर्य उर्ध्वगामी बनता है। करने का क्या प्रयोजन है? 2. चंदन से मन में ठण्डक रहती है। उ. 1. प्रथम प्रयोजन- समवसरण में 3. अलौकिक शक्तियाँ एवं गुण प्रकट प्रभु के दोनों तरफ देव चंवर दुलाते होते हैं। हैं। उसके प्रतीक रूप चंवर ढुलाये 4. तिलक सौभाग्य व सम्मान की जाते हैं। सूचना देता है। 2. द्वितीय प्रयोजन- प्रभु के सम्मुख 5. तिलक करने से पूर्व 'ओम् आँ ह्रीं जो व्यक्ति नृत्य करता है, उसे क्ली अर्हते नमः' यह मंत्र सात कर्मराजा के सम्मुख नृत्य नहीं बार बोलकर केसर, चंदन को करना पड़ता है। अभिमंत्रित करना चाहिये। ___ प्र.437.प्रभु पूजा करने से क्या लाभ होते 6. परमात्मा की आज्ञा शिरोधार्य .. करने स्वरूप आज्ञा चक्र पर . उ. प्रभु पूजन से निम्न लाभ होते हैं - तिलक अंकित किया जाता है। 1. विघ्नों की समाप्ति 2. सौभाग्य में प्र.435. दर्पण में प्रभु को क्यों निहारा वृद्धिं 3. पुण्यानुबंधी पुण्य का संचय 4. जाता है? इहलोक-परलोक में सुख व शांति उ. दर्पण में प्रभु को निहारते समय की प्राप्ति 5. कर्म निर्जरा 6. सिद्धगति चिन्तन करते हैं कि-प्रभो! आपका की प्राप्ति.। जो वीतराग स्वरूप दर्पण में दिख रहा प्र.438. महाराजश्री! खरतरगच्छ की परम्परा में है, वही स्वरूप मेरा है पर वह कषायों 'जयवीयराय सूत्र' की आभवमखण्डा से आवृत्त है। दर्पण में प्रभु को निहारने तक दो गाथाएँ ही बोली से दर्प और कंदर्प विनाश को प्राप्त जाती है जबकि तपागच्छ आदि होते हैं। जो व्यक्ति मंदिर के दर्पण में परम्पराओं में पाँच गाथाओं में शरीर का शृंगार करता है, वह कर्मबंध यह पाठ बोला जाता है, तो क्या करता है। आप आधा पाठ ही बोलते हैं? प्रभु का निर्दोष सौन्दर्य कहता है कि उ. वास्तविकता तो यह है कि दर्प न करो। यह सौन्दर्य क्षणिक एवं खरतरगच्छ की परम्परा में पूरा पाठ नश्वर है, अतः दर्प विजेता बनो। ही बोला जाता है। स्वयं तपागच्छीय