________________ जब परमात्मा की प्रतिमा पर अंजन- रचित सूत्रों में ही जिन प्रतिमा शलाका का महाविधान होता है तो पूजा की बातें कही गयी हैं? प्राणों की प्रतिष्ठा की जाती है, जीव उ. भगवती, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञाकी नहीं। पना आदि आगमों में जिन -प्रतिमा परमात्मा तो सिद्ध हो चुके हैं, उनका पूजा का वर्णन उपलब्ध होता है। छठे संसार में पुनः आना अशक्य है परन्तु ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में द्रौपदी के द्वारा तीर्थंकर के भव में जो दस प्राण जिनपूजा एवं नमुत्थुणं के द्वारा स्तुति परमात्मा ने भोगे, वे जड, पुद्गल प्राण करने का पाठ उपलब्ध होता है। इस वायुमण्डल में बिखरे पडे हैं, उन्हें आगमों में अनेक स्थलों पर शाश्वत जब शुभ मुहूर्त में विविध मुद्रा, प्रतिमाओं का भी विवेचन प्राप्त होता मंत्रोच्चारण एवं विधि-विधान के द्वारा है, अतः स्पष्ट है कि जिन प्रतिमा आकर्षित करके प्रतिमा में आरोपित आगमानुसारी है, न कि आगम व किया जाता है, तब शुभ, दिव्य सिद्धान्त विरुद्ध एवं काल्पनिक। पुद्गलों से वह प्रतिमा भी अतिशयपूर्ण प्र.446. मंदिर में केसर वर्षा, अमी वर्षा, बन जाती है और जीव को शिव की छत्र का डोलना आदि चमत्कार यात्रा करवाती है अतः ध्यान रखना- देखे जाते हैं पर महाराजश्री! प्रतिमा में जीव की नहीं, प्राणों की भगवान तो मोक्ष में पहुँच गये, प्रतिष्ठा की जाती है और उन प्राण फिर वे चमत्कार कैसे कर सकते पुद्गलों की हजाबों, लाखों, करोड़ों हैं? प्रतिमाओं में प्रतिष्ठा असंभव नहीं है। उ. सही बात है। भगवान तो संसार एवं प्र.445. महाराजश्री! हमने सुना है कि राग-द्वेष से मुक्त हो गये अतः वे जिन प्रतिमा काल्पनिक है। आप चमत्कार नहीं करते हैं। भक्त की प्रभु हमें बताएँ कि आगमों में भी कहीं भक्ति से प्रभावित होकर परमात्मा के जिन प्रतिमा का विधान उपलब्ध भक्त अधिष्ठायक देव और देवी है अथवा आचार्यों के द्वारा चमत्कार करते हैं। ***** ******* 159 * ***