________________ करने से उनमें विद्यमान गुण तरंगों अहिल्या भी ऊर्जामयी बन गयी थी। पर सवार होकर हमारे शरीर में प्रविष्ट प्र.398. चरण स्पर्श किस प्रकार करना हो जाते हैं। चाहिये? धर्म-विज्ञान के अनुसार चरण-स्पर्श उ. चरण स्पर्श की प्रक्रिया समझने से व्यक्ति विनय युक्त हो जाता है जैसी है। वर्तमान में व्यक्ति घुटनों का और विनय-नमन एक ऐसा चुम्बकीय स्पर्श करता है, इसी से लगता है कि गुण है, जो महापुरुषों को भी आकृष्ट घुटनों की बीमारी बढ़ती जा रही है कर लेता है। इससे व्यक्ति महानता क्योंकि अंगों से निकलने वाली ऊर्जा के शिखर का वरण कर लेता है। हमें प्रभावित करती है। विनय से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। (i) चरण स्पर्श करते समय प्रणम्य कर्म विज्ञान की दृष्टि से गुणवानों को पुरूष के चरण-अंगुष्ठ से ललाट का वंदन करने से उच्च गोत्र का उपार्जन एवं अंगुलियों के पोरवों का संयोग एवं नीच गोत्र का क्षय होता है। होना चाहिये, ताकि उससे प्रवाहित आरोग्य विज्ञान की दष्टि से भी होने वाली सात्त्विक, विधायक ऊर्जा 'प्रणाम' की प्रक्रिया अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रहण की जा सके। है। चरण स्पर्श में मेरु-दण्ड को (ii) दांये हाथ का स्पर्श बांये चरण से मोड़ने-सीधा करने की प्रक्रिया से वह एवं बांये हाथ का दांये चरण से स्पर्श लचीला, प्राणवान्, स्वस्थ एवं सुदृढ़ करना चाहिये। धनात्मक एवं बनता है, जिससे व्यक्ति में एकाग्रता, ऋणात्मक ऊर्जा का संयोग होने से ध्यान, साधना का विकास होता है। तन, मन एवं चेतन में विद्युत् तरंगों का पवित्र चरित्र के धारक मर्यादा स्पन्दन होता है, जो अनेक रोगों का पुरूषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी के अंगुष्ठ- निदान कर देता है। स्पर्श से श्रापिता कठोर पाषाणवत्