________________ कषाय : जन्म-मरण की आय प्र.372. कषाय किसे कहते है? कषाय स्वयं को ही नहीं, आस-पास, उ. कष् अर्थात् संसार, जन्म-मरण / घर- परिवार-समाज में रहनं वाला आय- अर्थात् वृद्धि / को भी अशान्त तथा दुःखी करते हैं। जिसके कारण संसार की एवं हृदयाघात (Heart Attack), रक्तचाप जन्म-मरण की वृद्धि होती है, उसे (B.P.), आत्महत्या, पागलपन, तनावकषाय कहते है। मनमुटाव उत्पन्न करके इस भव को प्र.373. कषाय के प्रकार बताओ | . बरबाद करते हैं तथा परभव में उ. (1) क्रोध-गुस्सा (2) मान-अभिमान नरकादि दुर्गतियों में ले जाते (3) माया-कपट (4) लोभ-लालच / हैं। आतंकवाद, हिंसा तथा शोषण प्र.374. कषायों पर विजयी बनना आखिर को प्रोत्साहित करते हैं। क्यों आवश्यक है? परमात्मा महावीर कहते हैं-क्रोधादि शास्त्रों में कहा गया-क्रोध से जीव कषाय अग्निरूप है तथा उनका शमन पतित होता है, मान से नीच गति पाता करने में श्रुत, शील और तप जल का है, माया से सद्गति का विनाश होता काम करते हैं। आज विश्व-अशांति, है और लोभ दोनों लोकों में भय युद्ध एवं हिंसा का जो ताण्डव नृत्य हो उत्पन्न करता है। रहा है, उसमें प्रमुख कारण कषाय ही जब तक जीव कषायाधीन है, तब तक है। प्रभु महावीर, श्रीराम, गांधी, समस्त चारों गतियों में भ्रमण करता रहता है। महापुरूषों ने कषाय को त्याज्य कहा कषाय दुःखों की खान है। क्रोध के है। जीवन को शान्ति, प्रेम और क्षमा कारण चण्डरूद्र सर्प बने, मान के का नंदनवन बनाने के लिये खामेमि कारण रावण का विनाश हुआ, माया सव्व जीवे, वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे के कारण मल्लिनाथ स्त्री बने तथा भवन्तु सुखिनः, शिवमस्तु सर्व जगतः लोभ के कारण सुभूम चक्रवर्ती मृत्यु आदि दिव्य सूत्र प्रदान किये। को प्राप्त हुआ। प्र.375. क्या गतियों की अपेक्षा से संज्ञा * **** ***** 133 ***** ********