________________ एवं कषायों में विशिष्टता होती है? बिल्कुल! यद्यपि हर गति में चारों संज्ञा व कषाय तरतम भाव से पाये जाते हैं तथापि उनमें किसी एक की प्रधानता भी होती है-जैसे1. नरक गति में क्रोध कषाय एवं भय संज्ञा की प्रधानता होती है / 2. तिर्यंच गति में माया कषाय एवं __ आहार संज्ञा की प्रधानता होती है। 3. मनुष्य गति में मान कषाय एवं ___ मैथुन संज्ञा की प्रधानता होती है। 4. देव गति में लोभ कषाय एवं परिग्रह संज्ञा की प्रधानता होती है। प्र.376. कषायों के त्याग में क्या कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है? वैज्ञानिक शोध से यह प्रमाणित हो चुका हैं कि जब क्रोध आता है, वह शारीरिक व मानसिक क्षमता पर तीव्र प्रहार करता है। हजारों लाखों उपयोगी कोशिकाएं कुछ समय में नष्ट हो जाती हैं। किसी ने बहुत अच्छा ही कहा है-चुल्हे की आग से जलकर बहुत कम जीव मरे हैं पर क्रोधे के दावानल में सुलगकर अनन्त जीव मर चुके हैं। यह वह शैतान हैं, जो पहले विवेक और बुद्धि का घात करता है, उसके बाद मनुष्य का। ******** ******** 134 शास्त्रकार कहते है-विष जीवन में एक बार मारता है परन्तु कषाय अनन्त बार। दस मिनट के क्रोध से व्यक्ति का पाचन तंत्र इतना अस्त व्यस्त हो जाता है कि उसे ठीक होने में चौबीस घण्टे लग जाते हैं। क्रोध शरीर की ग्रन्थियों और स्रावों को विक्षिप्त कर देता है, ब्लड सर्ग्युलेशन बढ जाने से उच्च रक्तचाप की बीमारी हो जाती है, सांस की गति बढने से फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। एड्रीनल ग्रंथियों का स्राव तीव्र गति से होने से पेट, नेत्र, हृदय के रोग हो जाते हैं। कभी क्रोध में व्यक्ति किसी को मार देता है या स्वयं आत्म हत्या कर बैठता है या Heart Attack आ जाता है। इसलिये जरूरी है कि दिल और दिमाग के उपवन को क्रोध की अग्नि से बचाये रखो | Let go करना सीखो। वैज्ञानिक संशोधन के प्रकाश में यह स्पष्ट हो चुका हैं कि गृहिणियाँ भोजन बनाते समय या बच्चे को दूध पिलाते समय यदि क्रोध में होती हैं तो वह भोजन और दूध भी विषयुक्त हो जाता है। याद रखो- क्रोध जहर है और समता अमृत। **** **********