________________ संज्ञा का शमन प्र.368. संज्ञा किसे कहते है? ढंढण अणगार अठारह हजार मुनियों उ. जीव में उत्पन्न इच्छा/आकांक्षा को में एवं धन्ना अणगार चौदह हजार संज्ञा कहा जाता है। मुनियो में प्रशंसा के पात्र बने / उनका प्र.369.संज्ञा कितने प्रकार की होती हैं? क्रमशः श्री नेमिनाथ एवं महावीर उ. चार प्रकार की स्वामी ने श्रीमुख से यशोगान गाया। (1)आहार संज्ञा– भोज्य-पदार्थों की (ii) भय संज्ञा को छोड़कर इच्छा करना। सुदर्शन श्रावक प्रभु महावीर के (2)भय संज्ञा- मृत्यु आदि से भयभीत दर्शनार्थ गया। उसकी प्रेरणा से होना / . अर्जुनमाली ने संयम स्वीकार किया। (3) मैथुन संज्ञा- काम-भोग की (iii) मैथुन संज्ञा के त्याग-फलरूप कामना करना। . स्थूलिभद्र चौरासी चौबीसी तक अमर (4)परिग्रह संज्ञा-पदार्थ की आकांक्षा हुए। उनके प्रभाव से कोशा वेश्या करना एवं उस पर ममत्व रखना / श्राविका बनी। जम्बू कुमार ने काम प्र.370. इन चार प्रकार की संज्ञाओं का . भोगों की असारता समझाकर आठों परिहार आवश्यक क्यों है? पत्नियों साधु-धर्म प्रदान किया व उ... “इच्छा हु आगास समा अणन्तिया' केवलज्ञान पाया। इच्छा आकाश के समान अनंत हैं। (iv) परिग्रह संज्ञा को छोड़कर अनन्त कदाचित् स्वर्ण निर्मित असंख्य तीर्थंकर, जम्बूकुमार आदि मुनिवर कैलाश पर्वत मिल जाये तो भी जीव अनन्त आत्म सुख के उपभोक्ता बने। का उसी प्रकार सन्तुष्ट होना असंभव प्र.371.महाराजश्री! यह तो समझ आ है, जिस प्रकार नदियों से समुद्र का गया कि इनका भोग भवरोग का एवं काष्ठ से अग्नि का संतुष्ट होना तथा त्याग वीतराग पद का कारण अशक्य है।' है परन्तु छोड़ना भी तो कैसे ? (i) आहार संज्ञा का त्याग करके यह भी तो बताईये। *-**-*-*-*-*-*-*-*-*-* 131 * ********