________________ बहुलता-प्रबलता से हार भी जाता है जब तक उनका आत्मा से संयोग अतः कहीं जीव कर्माधीन है, कहीं कर्म नहीं होता है, तब तक वे मात्र जीवाधीन है। पुद्गल ही होते हैं, उनमें फल देने प्र.309. कर्म और आत्मा का संबंध कब से है? की शक्ति नहीं होती है। उ. अनादिकाल से। 3. यदि कहा जाये कि दोनों की प्र.310. कर्म और आत्मा के सम्बंध की उत्पत्ति एक ही साथ हुई, तो भी आदि मान ले तो क्या आपत्ति हो असंभव ही है क्योंकि इन्हें उत्पन्न सकती है? करने वाला कोई ईश्वर नहीं है। कर्म और आत्मा दोनो का संबंध इससे स्पष्ट है कि कर्म और जीव, अनादि है। दोनों का संबंध अनादि है। संसार 1. यदि ऐसा माना जाय कि पहले में जब भी जीव था, कर्म युक्त ही आत्मा थी, तत्पश्चात् उससे कर्म था क्योंकि कर्म बिना तो जीव का संयोग हुआ तो भी उचित नहीं मुक्ति की दशा में होता है। है, क्योंकि कर्म रहित शुद्धात्मा पुनः प्र.311.यदि कर्म और आत्मा का संबंध कर्म सहित हो जाती है तो फिर अनादिकालीन है तो इस सम्बन्ध उसकी मुक्ति ही निरर्थक है। का अन्त कैसे संभव है? मुक्तात्मा के पुनः कर्म लिप्त होने उ. यह कोई अनिवार्य नियम नहीं कि से समस्त धर्म-कार्य व्यर्थ हो जिसका अनादि संबंध हो, वह अनन्त जायेंगे। हो। जिस प्रकार मिट्टी और स्वर्ण का 2. यदि ऐसा माना जाये कि कर्म की सम्बन्ध अनादिकालीन है परन्तु अग्नि उत्पत्ति पहले हुई तो भी संभव नहीं के साधन से उन्हें अलग-अलग है क्योंकि जीव ही कर्म का कर्ता किया जा सकता है, उसी प्रकार है। जीव की शुभ-अशुभ रत्नत्रयी की सम्यक् आराधना से विचारधारा एवं क्रिया के द्वारा जीव कर्म मुक्त होकर सिद्ध अवस्था आत्मा से संयुक्त होने वाले को प्राप्त कर लेता है। पुद्गलों को 'कर्म' कहा जाता है। प्र.312. जीव जब यह जानता है कि शुभ