________________ कर्म का फल प्र.330.अनुभाव से क्या अभिप्राय है? उ. 1. हल्की, गहरी अथवा प्रगाढ निद्रा उ. कर्मबंध के परिणाम/फल/परिणति का आना। को भोगना, अनुभाव कहलाता है। 2. वस्तु -- तत्त्व का सामान्य बोध न प्र.331.ज्ञानावरणीय कर्म का परिणाम हो पाना। बताओ। प्र.333.शाता और अशाता वेदनीय कर्म उ. 1. बहरा होना अथवा कम सुनना। का फलभोग समझाईये। 2. अंधा होना अथवा कम दिखना। उ. 1. अनुकूल - मनोज्ञ शब्द, रूप, रस, 3. सूंघने की शक्ति न होना अथवा गंध, स्पर्श की प्राप्ति। ___कम होना। 2. स्वस्थ मन, वचन और काया की 4. स्वाद ग्रहण की शक्ति का न होना प्राप्ति शाता वेदनीय कर्म के __ अथवा कम होना। परिणाम हैं। इससे विपरीत 5. ठण्डा-गर्म आदि स्पर्श जान न प्रतिकूल शब्दादि की प्राप्ति पाना अथवा अल्पाधिक जानना। अशाता वेदनीय कर्म के परिणाम 6. सुनकर, देखकर, सूंघकर, चखकर है। जैसे- रोगग्रस्त होना, कष्ट अथवा स्पर्श करके भी समझ न पाना। आना आदि। 7. बुद्धि का अल्प होना अथवा न प्र.334.मोहनीय कर्म के परिणाम बताईये। होना। मोहनीय कर्म के उदय से जीव 8. ज्ञान प्राप्त न होना। मिथ्यात्वी बनता है, जिनोक्त तत्त्व पर 9. अविकसित मन का होना। शंका करता है, क्रोध-मान-माया10. स्पष्ट व सही शब्दोच्चारण नहीं लोभ में लिप्त होता है, कामभोग की कर पाना / कामना करता है, प्रतिकूलता में 11.हकलाना। विषादग्रस्त एवं अनुकूलता में प्र.332. दर्शनावरणीय कर्म के अनुभाव आनंदित होता है। भयभीत एवं बताओ। शोकमग्न बनता है। **************** 115 ****************