________________ तत्त्वत्रयी : सुदेव, सुगुरु, सुधर्म प्र.168. तत्त्वत्रयी से क्या अभिप्राय है? उपद्रव नहीं होते हैं। उ. 1. सुदेव 2. सुगुरु 3. सुधर्म / 2. ज्ञानातिशय - परमात्मा संपूर्ण प्र.169.सुदेव किसे कहते है? लोकालोक को द्रव्य, क्षेत्र, काल, उ. जो मिथ्यात्व, कषाय, अविरति, प्रमाद भाव से जानते हैं। आदि दोषों से मुक्त हो चुके हैं और 3. वचनातिशय-परमात्मा की वाणी दूसरों को भी मुक्त करने वाले हैं, जो एक योजन (13 कि.मी.) तक तिर गये और दूसरों को भी तारने सुनायी देती है एवं हर भाषा वाला वाले, आत्मबोध देने वाले हैं, उनको उसे समझ जाता है। उनकी सुदेव कहते हैं। अरिहंत एवं सिद्ध पैंतीस गुणालंकृत वाणी से समस्त परमात्मा सुदेव कहलाते हैं। शंकाओं का निवारण होता है। प्र.170.अरिहंत परमात्मा कितने गुणधारी श्रोता को ऐसा प्रतीत होता है कि होते हैं? . परमात्मा मेरी भाषा में कह रहे हैं। उ. अरिहंत परमात्मा के बारह गुण - वर्तमान में संसद भवन में भी इस 1. अशोक वृक्ष 2. सुरपुष्प वृष्टि 3. प्रकार के यंत्र लगे हुए हैं कि कोई दिव्यध्वनि 4. चामर युगल 5. स्वर्ण सांसद मराठी में बोलता है पर सिंहासन 6. भामण्डल 7. देव-दुंदुभि प्रत्येक सांसद को अपनी अपनी 8. छत्रत्रय 9. अंपायापगमातिशय 10. (तमिल, तेलगु, गुजराती आदि) ज्ञानातिशय 11. वचनातिशय 12. भाषा में सुनाई देता है। पूजातिशय। इनमें से प्रथम आठ 4. पूजातिशय- इन्द्र, देव, देवी, प्रातिहार्य और शेष चार अतिशय मनुष्य, तिर्यंच, सभी प्रभु की पूजा कहलाते हैं। करते हैं, यह परमात्मा का प्र.171. चार अतिशय से क्या अभिप्राय है? _पूजातिशय है। उ. 1. अपायापगमातिशय - अपाय प्र.172.सिद्ध परमात्मा के कितने गुण यानि उपद्रव। अपगम-नाश / होते हैं? जहाँ परमात्मा विचरते हैं,वहाँ चारों उ. आठ गुण-1. अनन्त ज्ञान 2. अनन्त दिशाओं में 25 योजन तक एवं दर्शन 3. अनन्तचारित्र 4.अनन्तवीर्य ऊपर नीचे साढ़े बारह योजन तक, (शक्ति) 5. अव्याबाध सुख 6.अक्षय इस प्रकार कुल 125 योजन पर्यन्त स्थिति 7. अगुरुलघुत्व 8. अरूपीत्व / रोग, महामारी, अतिवृष्टि आदि प्र.173.सुगुरू किसे कहते है? ***************** 53 ******* ** *****