________________ "प्र.238. मनुष्य से क्या अभिप्राय है? उ. मत्वा हिताहितं ज्ञात्वा कार्याणि 'सीवन्ति इति मनुष्याः' जो स्वयं के हित एवं अहित का विचार करके कार्य करते हैं, उन्हें मनुष्य कहते हैं। प्र.239. मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं? उ. मुख्यतः तीन प्रकार के (1) कर्मभूमिज- जहाँ असि (शस्त्रादि), मसि (लेखनी) और कृषि से संबंधित कार्य होता है तथा जहाँ जीव मोक्ष. प्राप्त करने का कर्म (पुरूषार्थ) करता है, उसे कर्मभूमि कहते हैं। उनमें रहने वाले मनुष्य कर्मभूमिंज कहलाते हैं। कर्मभूमियाँ पन्द्रह कही गयी हैं-(1) पाँच भरत (2) पाँच ऐरावत . प्र. 240. जीवों के कुल कितने भेद कहे गये हैं ? उ. | जीव (3) पाँच महाविदेह / जम्बूद्वीप में भरतादि तीनों एक-एक भूमि है। धातकीखण्ड एवं अर्द्धपुष्करावर्त द्वीप में भरतादि तीनोंभूमियाँ दो-दो की संख्या मेंहैं। (2–3)अकर्मभूमिज एवं अन्तर्वीपज जिस क्षेत्र में असि-मसिकृषि का कार्य नहीं होता है एवं जहाँ युगलिक मनुष्य होते हैं, उन्हें अकर्मभूमिज एवं अन्तर्वीपज मनुष्य कहते है। हिमवंत, हिरण्यवंत, हरिवर्ष, रम्यक, देवकुरु और उत्तरकुरु, ये पाँचपाँच की संख्या में होने से कुल तीस अकर्मभूमियाँ हैं। 56 अंतर्वीप कहे गये हैं। एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय तिर्यंच नारकी देव मनुष्य 303 कुल 563 इन्हें विस्तार से जानने के लिये जीव विचार प्रकरण का अध्ययन करना चाहिये। /