________________ - नरक : दुःखों का महासागर प्र.232. नरक किसे कहते है? सारा अन्न-जल मिले तो भी उ. पंचेन्द्रिय वध, महारंभ-समारंभ, पर भूख - प्यास शान्त न हो परन्तु स्त्रीगमन आदि कठोर, पापकारी, क्रूर खाने - पीने को कुछ भी प्राप्त कार्यों का अशुभ फल जीव को जहाँ नहीं होता है। प्राप्त होता है, उसे नरक एवं उसमें (4) भयंकर खुजली, तीव्र ज्वर रहने वाले जीवों को नारकी कहा एवं हजारों रोगों से ग्रस्त और जाता है। नरक के सात भेद कहे गये प्रतिपल भयभीत नारकी जीव हैं- घम्मा, वंशा, सेला, अंजना, रिष्टा, घोर वेदना को भोगते हैं। मघा और माघवती। (3)परस्परकृत वेदना- कुत्ते-बिल्ली, प्र.233. नरक में जीव को किस प्रकार के सांप-नेवले की भांति जन्मजात दुःख प्राप्त होते हैं? वैरी नारकी जीव परस्पर लड़नरक में तीन प्रकार के दुःख कहे गयेहैं झगड़ कर तीव्र वेदना को प्राप्त (1)परमाधामी देवकृत वेदना- पंद्रह करते हैं। परमाधामी देव नारकी जीवों को प्र.234. यह तो समझ में आ गया कि नरक ... विविध घोर यातनाएँ देते हैं। में खतरनाक वेदना है पर क्या (2)क्षेत्रजन्य वेदना-यह दस प्रकार : भावी तीर्थंकर को भी भोगनी की होती हैं जैसे पड़ती है? .. (1) नरक में इतनी सर्दी है कि उ. अवश्यमेव / 'कर्म किसी का सगा कंदाच् नारकी जीवों को नहीं। तीर्थंकर हो चाहे चक्रवर्ती, हिमालय पर्वत पर ले जाये इन्द्र हो चाहे नरेन्द्र। हर जीव को तो भी गर्मी का अहसास होगा। स्वकृत कर्मों का फल भोगना ही (2) नरक में गर्मी इतनी ज्यादा है पड़ता है। कि यहाँ भट्टी में रखें तो भी प्र.235. क्या सभी नारकी जीवों को एक नैरयिकों को शांति का अनुभव समान वेदना प्राप्त होती है ? होगा। उ. प्रथम नरकापेक्षया द्वितीय नरक में (3) प्रतिपल क्षुधा एवं तृषा का वेदना अधिक है, इसी तरह सप्तम ऐसा परीषह कि संसार का नरक पर्यन्त समझना चाहिये। पर