________________ प्र.249. देव के भेदों को विस्तार से समझाओ। देव विविध प्रकार के होते हैं6) अधोलोकवर्ती देव(1)भवनपति देव-दस भेद वाले ये देव भवनों में रहते हैं तथा सुकुमार, मंद-मृदुचाल वाले क्रीड़ाशील होते हैं। (2)परमाधामी देव-पन्द्रह प्रकार के ये देव नारकी जीवों को दारूण यातना देकर सताते हैं और आनंदित होते हैं। (ii) मध्यलोकवर्ती देव(1)व्यंतर तथा वाणव्यंतर देव वनों के अन्तरों में रहने वाले इन देवों के आठ-आठ भेद कहे गये हैं। (2)तिर्यग्नुंभक देव- दस प्रकार के ये देव जिस पर तुष्ट होते हैं, उसे मालामाल कर देते हैं तथा जिस पर रूष्ट होते हैं, उसे दुःखी करते हैं। तीर्थंकर परमात्मा के च्यवनजन्म कल्याणक के समय वन, भूमि, गुफा आदि में पड़े धन से उनके खजाने भर देते हैं। .. (3)ज्योतिष्क देव- सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा नामक पाँच प्रकार के ये देव प्रकाश करते हैं। (iii)उर्ध्वलोकवर्ती देव(1)वैमानिक देव- सौधर्म, ईशान आदि बारह प्रकार के होते हैं। (2)किल्बिषिक देव- तीन प्रकार के ये देव ढोली, चमार जैसा काम करते हैं, अविवेकवश बार-बार अपमानित होते हैं। (3) नवलोकान्तिक देव-तीर्थंकर प्रभु को दीक्षा लेकर केवलज्ञानपूर्वक चतुर्विध संघ स्थापना की विनंती करने जैसा पुण्यकर्म संपादित करने वाले लोकान्तिक देव नौ प्रकार के होते हैं। (4) नवग्रैवेयक–ये नौ प्रकार के होते हैं। (5)अनुत्तर वैमानिक-पाँच प्रकार के इन देवों में सर्वार्थसिद्ध विमान के देव नियमतः एकावतारी ही होते हैं। ******** ******* 78 ****************