________________ साहूणं न पुण सड्ढाणं / ' उष्ण जल चौविहार एवं एक दिन तिविहार से संबंधित छह आगार साधु के लिये उपवास करना चाहता है, तो वह हैं, श्रावकों के लिये नहीं। कैसे संभव होगा? 2. परम्परा - दादा श्री जिनदत्तसूरि 3. भगवती सूत्र के तृतीय एवं सप्तम ने इसका सूत्रपदोद्घट्टने एवं शतक में, आवश्यक चूर्णि इत्यादि जिनपतिसूरि ने समाचारी ग्रंथ में में एक साथ एक उपवास के इसका निषेध किया गया है। प्रत्याख्यान का कथन किया गया 3. साधु गौचरी जाते हैं अतः वे सभी है। प्रकार के प्रासुक जल ले सकते हैं प्र.166. छह आवश्यकों में से कितने किस पर गृहस्थ गौचरी नहीं जाता है, काल से सम्बंधित है ? .. अतः उसके लिये शुद्ध उष्ण जल उ. (1) अतीत से सम्बन्धित एक - ही ग्राह्य है। प्रतिक्रमण प्र.165. महाराजश्री! खरतरगच्छ में बेले, (2) भविष्य से सम्बन्धित एक - तेले, चोले आदि का एक साथ प्रत्याख्यान। प्रत्याख्यान क्यों नहीं करवाया (3) वर्तमान से सम्बन्धित शेष चार। जाता है? प्र.167.प्रतिक्रमण से किन गुणों की प्राप्ति उ. इसके संदर्भ में विद्वद्वर्य श्री होती है ? समयसुंदरोपाध्याय ने अनेक तर्क एवं उ. (1) सम्यक्त्व की प्राप्ति व उसकी शास्त्रीय प्रमाण समाचारी शतक में विशुद्धि। प्रस्तुत किये हैं यथा (2) विरति एवं विरक्ति। 1. एकाधिक उपवास कर्ता का मध्य (3) अप्रमाद की साधना। में प्रत्याख्यान खण्डित होने पर (4) कषाय - मुक्ति अथवा उसकी पूरा तप खण्डित होगा, जिससे मंदता। महान् दोष लगेगा। (5) शुभ योगों से पुण्यानुबंधी पुण्य का 2. दो उपवास वाला एक दिन संचय।