________________ (3) वेदनीय कर्म क्षय से अनन्त सुख। (4) मोहनीय कर्म क्षय से क्षायिक चारित्र / (5) आयुष्य कर्म क्षय से अक्षय स्थिति। (6) नाम कर्म क्षय से अरूपीत्व / (7) गोत्र कर्म क्षय से अगुरुलघुत्व। (8) अन्तराय कर्म क्षय से अनन्त शक्ति / प्र.61.कर्म-मुक्त होने पर जीव सीधा उपर की ओर ही क्यों जाता है? उ. तुम्बे की तरह निर्लेप होने से, एरण्ड बीज की तरह निर्बंध होने से तथा उर्ध्वगमन जीव का स्वभाव होने से आत्मा दायें-बायें-नीचे न जाकर सीधे उपर,लोक के अग्रभाग (सिद्धशिला) पर स्थित हो जाता है। उसके आगे धर्मास्तिकाय का अभाव होने से नहीं जाता है। प्र.62. यदि जीव इस प्रकार मोक्ष में जाते रहेंगे तो क्या संसार खाली नहीं हो जायेगा? उ. नहीं। संसार में मोक्षगामी भव्य जीव अनन्त हैं। अनन्त का अन्त असंभव है। यदि अन्त होना सम्भव होता तो अब तक हो चुका होता क्योंकि अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी से जीव निरंतर मोक्ष में जा रहे हैं। निगोद के एक शरीर में जो अनन्त जीव है, वह भी आज तक खाली न हुआ, न होगा तो फिर संसार के जीव-रहित होने की कल्पना ही कैसे की जा सकती है! 22