________________ चिकित्सा करता है, वैसे ही गुरू 4. प्रतिक्रमण- पाप कर्मों से आत्मा महाराज के पास व्यक्ति कर्म की शुद्धि-विशुद्धि। व्याधि को समझकर प्रतिक्रमण के 5. कायोत्सर्ग- शरीर के प्रति ममत्व द्वारा दोषों की शल्य-चिकित्सा का त्याग। करता है। (प्रतिक्रमण आवश्यक) 6. प्रत्याख्यान- पाप कर्म से मुक्ति जैसे शल्य चिकित्सा के बाद रोगी एवं कर्म-निर्जरा। दवाई लेता है वैसे आत्मिक प्र.111. प्रतिक्रमण के पाँच प्रकारों को स्पष्ट स्वास्थ्य लाभ के लिए कायोत्सर्ग करो। रुप औषधि लेता है। (कायोत्सर्ग उ. 1. दिन भर में हुए पापों की आलोचना आवश्यक) के लिये दिवस के अन्त में किया 6. दवाई लेने मात्र से व्यक्ति स्वस्थ जाने वाला देवसिक प्रतिक्रमण। नहीं होता बल्कि परहेज भी जरूरी 2. रात्रि में हुए पापों की आलोचना के होता है। उसी प्रकार कायोत्सर्ग लिये रात्रि के अंत में किया जाने ' की औषधि लेने के उपरान्त वाला रात्रिक (राइ) प्रतिक्रमण। अतिचार, अनाचार आदि पापों का 3. पक्ष (15 दिन) में हुए पापों की त्याग/परहेज किया जाता है। आलोचना के लिये पक्ष के अन्त में (प्रत्याख्यान आवश्यक) किया जाने वाला पाक्षिक प्र.109.छह आवश्यकों को चिकित्सा के प्रतिक्रमण। . रूप में विभक्त करो। 4. चार माह में हुए पापों की 1. सामायिक - हॉस्पिटल आलोचना के लिये चार माह के 2. चतुर्विंशति स्तव - मेन डॉक्टर अन्त में किया जाने वाला 3. वंदनक - असिस्टेंट डॉक्टर चातुर्मासिक़ प्रतिक्रमण। 4. प्रतिक्रमण- ऑपरेशन 5. वर्ष भर में हुए पापों की आलोचना 5. कायोत्सर्ग- ड्रेसिंग - मेडिसीन के लिये वर्ष के अन्त में किये जाने 6. प्रत्याख्यान-प्रिकोशन ___ वाला सांवत्सरिक प्रतिक्रमण। प्र.110. छह आवश्यक के क्या लाभ हैं? प्र.112. प्रतिक्रमण कितने कारणों से किया उ. 1. सामायिक- समता में वृद्धि एवं सावद्य योगों से विरति। पाँच कारणों से2. चतुर्विंशति स्तव-गुणी के गुण- 1. मिथ्यात्व- यदि कुदेव, कुगुरू गान से गुणों की प्राप्ति। और कुधर्म में श्रद्धा रखी हो। 3. वंदनक- नीच र्गात्र का क्षय एवं 2. अविरति - र्जा कुछ सावद्य (पाप उच्च गोत्र की प्राप्ति। युक्त) प्रवृत्ति की हो। *************** 38 जाता है? उ.